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________________ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह अथ श्लोक: गिरनारगिरेर्मोलौ नत्वा ये नेमिनं जिनं, पातकं क्षालयन्ति स्वं धन्यास्ते धृतसंमदा:. १० अथ रासु समुद्रविजय-सिवादेवीयनंदन, नंदन चंदनभास रे; अतुल महाबल अकल परम पर, परमेसर पूरइ आस रे. ११ पूनिम शशि जिम सहजि मनोहर, हरइ मोह-अंधकार रे; निसुणउ निर्मल भावि भविकजन, जिनवर नव अवतार रे. १२ अथ अद्वैउ प्रभु पहिलई अवतारि, धन भूपति अवधारि, धन धन धनवती ए, तसु वामंगि सती ए; भवि बीजइ सौधर्मे, त्रीजइ निरमल कर्मि, चित्रगति विद्याधरु ए, रतनवती-वरु ए. १३ चउत्थइ सुर माहिंदि, पंचम भवि हरिनंदि, सुत अपराजितु ए, प्रियमति' संगतु ए; प्रभु छइ अवतार, आरण सुरवर सार, सातमइ दंपती ए, शंख यशोमती ए. १४ भवि आठमइ वखाणि, अपराजिति सुविमाणि, नवमइ नव परि ए, नगर सूरीपुरि ए; समुद्रविजय-सुनरिंद-कुलि जायउ जिणचंद, शिवादेवि जननी ए, उत्सव त्रिभुवनि ए. १५ अथ फागु त्रिभुवन माहि महोत्सव, अवनीय अति आनंद; यादववंसि सुहावीउ, बावीसमउ जिणिंद. १६ इणि अवसरि मथुरांपुरि, अवतरिउ देव मुरारि; जीणइं कंस विध्वंसिय, केसिय कीधउ वारि.३ १७ श्लोक: चरितं वैष्णवं श्रुत्वा जरासिंधेऽथ कोपने, गता यादवभूपालाः सर्वे सौराष्ट्रमण्डलं. १८ रासु सोरठ मंडलि द्वारिका थापिय, आपिय अमर हराई रे; राज करइ तिहां देव नारायण, राय नमई तसु पाय रे. १९ जीणई हेलां जीतउ भूजबलि, समरथ राय जरासिंध रे; सोल सहस रमइ रंगिहिं रमणीअ, रमणीय रूप सुबंध रे. २० १. प्रीतिमति, २. जिन पूरे, ३. कीधो चारि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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