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जैन सुभाषित संग्रह
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कुवचन होये सौने अळखामणुं, सुवचन सौने सुहाय. कहिये ने [जो] मानो नहि, तो कहेवुं ते आलि; कचरामां नाखे कवण. मूरख कंचन - जाळी ? ( पुरुषनी स्त्री पर सत्ता छे)
नारीनो नर आगळे, श्यो आसरो कहेवाय ? कोडि टंकानी मोजडी, तो पण पहेरवी पाय. कृष्णागरु घणो रूअडो, पण पावकमा घलाय, तटिनी घणी विषमी हुए, पण सागरमा समाय. विषधर हुए घणो वांकडो, बिलमां सीधी होय, एम उखाणां छे घणां, पार न पामे कोय. पियु केम जाये छेतर्यो, अमे तो अबला बाल, दीठे मारग संचरू, पीजे पाय पखाल. कंथनो गायो गायशुं, अमचो कामण एह; के वळी वाते रीझवुं, के करी नवलो नेह. के भोजन युक्ते करी, के वळी सजी शणगार; के वळी गीतगाने करी, करशुं मुदित भरथार. चालिये केम प्राणेशथी, थइ उपरांठा छेक ? कपटे रमीए तेहथी, तो दुहवीए प्रभु एक. पालव बांध्यो जेहथी, तेहथी केम हुए कूड; गरूड आगळ लघु चरकली, किहां लगी जाए उड ?
(स्त्रीचरित्र)
(दैवनो वांक)
नारीओ कामणगारीओ, नर बापडा कुण मात्र ? नारी कंईने छेतर्या, शुं तमे नवी सुणी वात ? उमया इश नचावीओ, वळी अहल्याए सूरेश; अप्सराए ऋषि भोळव्यो, गोपिए वळी गोपेश. युवति जोरावर जो हुवे, वालम थइ रहे दास; पियुने वश नारी थइ, जन्म अलेखे तास.
दीधी खोड एकेकी रतनमां, देवे थइ निःशंक; खारो पयोधि कर्यो आकरो, शशिने दीध कलंक. जो जो लखित लेख न मिटे कदा, करे जो कोडी उपाय.
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