SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 638
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन गुजराती सुभाषितो ६२३ दिन जाइ पणि वत्तडी, रत्तडी न जाइ. एक रागी नी रोगीया, सहसि सरीरा[सहजि सरीखां] माईं. २०१ सहजि कडूउ लीबडु, गणे करीनि मिठ, ते माणस किम वीसरइ, जेह तणा गुण दीठ. २०२ ओछा तप कइ मइ कीया. कइ सर फोडी पालि, देवईं घर ऊदालीउं, पहिलइ यौवनकालि. २१८ चंदु चंदन केलिवन, कुंकू कज्जल नीर, इक्कइ कंतह बाहरां, एता दहि सरीर. २१९ सज्जन चित्ति न ऊतरइ, गया चमुक्कउ लाइ, मल नवि चुहुटईं कंचणह, जइ वरसा सउ जाइ. २१९ नेह विणठ्ठइ, गयगमणि, किसि जि तांणोताणि, भागुं मोती जो जडइ, तो मन · आवइ ठाणि. २५० माणस पाहि माछां भलां, साचा नेह सुजाण, जउ कीजइ जल-जूजूआं, तउ ततक्षण छंडई प्राण. २५२ वाइं हालई पान, तरुअर पुण हालइ नहीं, गिरुआ एह प्रमाण, एक बोलइ, बीजा सहइ. २५९ नही न भणीइ लोइ, दीजइ थोडा थोडिलूं, टीपइ टीपई जोइ, सरोवर भरीओ समुद्र जम. २७१ विरला जाणंति गुणा, विरला पालंति निद्धणा नेहा, विरला परकज्जकरा, परदुखे दुखीआ विरला. २८४ ग्रह अवला, विहि वंकडी, दुज्जण पूरउ आस, आवि दुहेला खंधि चडि, जिम सउ तिम पंचास. २९९ (क्र.१,२: जैन गुर्जर कविओ, बीजी आवृत्ति भा.१०, पृ.१८१-८५] ३. ऋद्धिचंद्रकृत 'मृगांकचरित्र'मांथी पय पानी उपर मिले, अंतर मिलो न हीर, किंउ मराल नीरह तजी, कीउ गही पीई सुखीर. ३२ वाति कीईं कवण गुण, जिहां नवि मलिउ मन्न, मन्नविहुणो प्रेमरस, जाणे अलुणो अन्न. ४८ मनु तोलो तनु ताजवी, हे सखी ! नेह केता मण होय, लागते लेखं नहीं, टूटई टांक न होय. ४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy