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जिणवर-देव जी सविई, रहीई THeman
प्राचीन गुजराती सुभाषितो
६२१ वार वहंतां याचतु, लेतु परधन ढोर, ए तिन्नि विमासण करे, वेसा चारण चोर. २०२ मुंहता विणु राज ज किस्युं, रखवाल विणु पोलि, पति पाखें नारी किसी, पहिरणु विण किसी मोलि. २१७ जीभे साचुं बोलिजे, राग रोस करि दूरि, उत्तम सुं संगति करि, लाभे जिम सुख भूरि. २५५ जिणवर-देव आराहिअ, नमीय सहगुरु भत्ति, सूधो धम्म ज सेविईं, रहीईं निर्मल चित्त. २५६
२. जिनसूरकृत 'रूपसेनकथा'माथी जीभईं साईं बोलीईं, राग रोस करि दूरि, उत्तम सिउं संगति करि, लाभइ जिम सुख भूरि. ७ जिहां बालक तिहां पेखणउं, जिहां गोरस तिहां भोग, मीठाबोलां ठाकुरां गामि वसइ बहु लोक. ३६ नमणी खमणी सुगुणी, बिहु पखि वंशि विशुद्ध, पुण्य विणा किम पामीईं, करि धणुही घरि भज्ज. ३९ इक आंबा नइं आकडा, बिहुँ सरिखां फल होइ, नव गुण एक करीरनईं, हाथ न वाहइ कोई. बज्झइ वारि समुद्दह, बज्झई पंजरि सींह, जे बज्झीइ कुणहइ नही, दुज्जण केरी जीह.. कर कंपइ, लोइण गलइ, बहु रन्न वल्ली भत्ति, जुव्वण गया जे दीहडा, वली न चडसि हत्थि. ७८ जिहां सहाईं बुद्धिबल, हुइ न तिहां विणास, सूर सवे सेवा करईं, रहइ आगलि जिम दास. ९८ गोरख जंपइ, सुणि-नईं बाबू, म गण आप-पराया, जीवदया एक अविचल पालु, अवर धर्म सवि माया. १०२ पुत्र मित्र हुइ अनेरा, नइ रहई नारि अनेरी, मोहइ मोह-मूढा, जंपईं ममु]हीयां मेरी.. १०३ अतिहिं गहना अति अपारा, संसार सायर खारा, बूझइ बूझइ गोरख बोलइ, सारा धर्म विचारा. १०४
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