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________________ एक जूनो सुभाषित संग्रह ६०३ कोइलि सरखी सत्र[सत] नहीं, जस मति घणुं विवेक, अंबविहूणी अवरसुं, बोल न बोलइ एक. ३४ सज्जण सहजि दूबला, लोक जाणइ सीदाइ, जस हीयडइ सारणि वहइ, ते किम माता थाइ. ३५ नीठर सरिसु नेहडु, म करसि, हीया गमार, रासभनांखी गूणि जिम, कोइ न पूछइ सार. ३६ देवपूजा गुरूपास्ति: स्वाध्यायः संयमस्तपो, । दानं चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने. ३७ आपणी ते जाणीइ, जे जे सरलं होइ, अंखि फरूकइ मनि हसइ, ए दोई लक्षण होइ. ३८ पापी परधन उलवइ, किमइ न आणइ खंच, चंचद्रोह करवा भणी, मंडिइ अधिक प्रपंच, ३९ भमरू जाणइ रस विरस, जे सेवइ वणराय, घण न जाणइ बापडु, सूकुं लाकड खाइ. ४० जे सजण तुह्म जड जडी, रेही तेह अपार, ते जडा किमइ न ऊजडइ, जो मिलइ लाख लोहार. ४१ गइ भागी, गूडा रहिया, लोयण दीधउ दाह, काने मांडिउं रूसणूं, गईं ति जोवन राय. ४२ हंसा केरइ बइसणइ, बगलां बइठां वीस, जे किरतारि वडां कीया, ते सिउं केही रीस ? ४३ करवतडी किरतार, जइ सिरि दीजत ताहरइ, तु तुं जाणत सार, वेदन विछोह्या तणी. ४४ बहू दुखह ऊलीचणूं, जइ नीसास न हुंति, हइडउं रतन तलाव जिम फुट्टवि दस दिसि जंति. ४५ पवन, सुणइ एक वातडी, हूं हव होइसि छार, तिण दिसि तूं ऊडाडये, जेणई दिसि हुइ भरतार. ४६ सासरइ तु सुख टलीयां, पीहरि टलीउ मान, पीउविरहिणी पदमिनी, जाइ जिहां तिहां रान. ४७ न करइ नयण-मेलावउ, वयण न पूछइ वात, जाणीजई साजण सही, कारण कांइ वात. ४८ YEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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