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सुभाषित दुहा पंचोत्तरी
(प्रसिद्ध साक्षर कविश्री मेघाणीए लोकसाहित्यने प्रकाशी गूर्जर साहित्यनी किंमती सेवा करी छे. तेमना शब्दोमां कहीए तो "प्रीतिना कोमल भावो, लोकगम्य सरल रूपकोमा दुहाओए संघरेला छ : अने एमां पहाडी कवितानो संस्कार महेके छे. ए कविता अभणोने पण अंतरे ऊतरी जाय छे, केमके एनां रूपको, उपमाओ वगेरे बधां जीवननी रोजिंदी दुनियामांथी ज घडेलां छे. एकंदर दुहासाहित्यनो झोक गामडिया जीवतरना मर्मोने लक्ष्यवेधी वाक्योथी आंटवानो छे.'' अहीं एक प्राचीन लेखके एकत्रित करेला सुभाषित रूपे ७५ दुहाओनो संग्रह करेलो ते मूकेल छे. आवा सुभाषित दुहाओ जैन गूर्जर साहित्यमा घणा विशाल प्रमाणमा उपलब्ध छे अने तेनो संग्रह ज्यारे प्रकाशित थशे त्यारे तेथी गूर्जर साहित्यमा एक सारी वृद्धि थशे.) [क्र.८ अने ९मां स्वल्प पाठभेदे सुभाषित बेवडायेल छे. – संपा.]
श्री वीतरागाय नमः. ग्यान पदारथ पायके, जहां तहां गांठ म खोल; नहि पाटण नहि पारखू, नहि ग्राहक नहि मोल. १ नीची दृष्टि चालतां, त्रिण गुण गाढा थाय; कांटो टले, दया पले, पग पिण नवि खरडाय. २ डग डागला तणीय, आउखो आदम तणो; घट त्रेवडे घणीय, जसा नमावे जगतमें. ३ दुःख आयें मत दु:ख धरे, सुख आये मत फूल; दई दइ क्या करत है, दई दइ सुकबूल. ४ सायर बाप कुबाप तुं, किं कज्जै बप्पेण ? एको रयण न अप्पीयो, लंछण फिट्टै जेण. ५ चंदा, पुत्त कुपुत्त तूं, किं किज्जै पुत्तेण ? इक्को बिंदु न अप्पीयो, खार ज फिट्टे जेण. ६ चंद संदेसा मोकले, सायर बप्प जुहार; चढ्या कलंक न उतरे, मो लंछण तो खार. ७ कुमतीरां जल ले चल्यो, तुम पर शिखर करंत; खाराथी मीठो करूं, तिण गुण भरीयो गाजंत. ८ कुमतीरां जल ले चल्यो, तुम पर शिखर करंत; खाराथी मीठो करूं, तिण गुण भरीयो गाजंत. ९
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