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________________ समयसुंदरनां केटलांक नानां काव्यो ५८३ १४. सेरीसामंडन पार्श्वनाथ भास सकल [सकलाप] मूरति सेरीसइ, पोस दसमि पारसनाथ भेट्योउ, देहनामी [देवनीमी] देहरउ दीसइ. १ प्रतिमा लोडति जाइ पातालइ, धरणि आउं धिरइ [आधीरइ] सीसइ, भाव-भगति भगवंतनी करतां, हरख घणइ हियडउ हीसई. २ पटणी पारिख सूरजी संघ-सुं, जात्र करी भली [लाभ] सुज़गीसइ, समयसुंदर कहइ साचउ मइ जाण्यउ, वीतराग [देव] वीसवीसइ. ३ (जुओ क्र.१६ने छेडे.) १५. पार्थवीर भास राग धन्याश्री पदमावति सिर उपरि, पारसनाथ प्रतिम सोहइ रे, नगर नलोलइ निरखतां, नरनारीनां मन मोहइ रे. १ पदमा. भुंहरा माहि अति भली, महावीरनी प्रतिमा मांडी रे, भगति करउ भगवंतनी, मोक्षमारगनी ए दांडी रे. २ पदमा० लोक जायइ जात्रा घणा, पदमावती परता पूरइ रे, समयसुंदर करइ जिन बेऊ ते, आरति चिंता चूरइ रे. ३ पदमा. (जुओ क्र.१६ने छेडे) १६. असाउली भाभा पार्श्वनाथ भास भाभउ पारसनाथ मइ भेट्यो, आसाउलि माहि आज रे, दुखदोहग दूरि गया सगला, सीधा वंछित काज रे. १ श्रावक पूजा सनात्र करइ [सहु] सपूरव ताल पखाज रे, [भगवंत आगल भावन भावइ, भय संकट जावई आज रे, २ अश्वसेन राजाकउ अंगज, तेवीसमउ जिनराज रे,] समयसुंदर कहइ हुँ सेवक तोरउ, तुं मेरे सिरताज रे. ३ - सं.१७०० वर्षे आषाढ वदि १ दिने श्री अमदावाद नगरे हाजा पटेल पोलि मध्यवर्ति वृद्धोपाश्रये...पंडित श्री समयसुंदरोपाध्याय लिखिता...हर्षनंदनगणि सहित. (प.सं.११-१३, रो.ए.सो.बी.डी. २६ नं.१९०६ 'तीर्थ भास छत्रीशी'-अंतर्गत) १७. आदीसर विनति आदीसर हो सोवनकाय, तेजई रवि जिम दीपतो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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