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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
दश खेत्रे ईक इक चोवीसी, वीस जिनेश्वर (सीझें), सिद्धक्षेत्र बहु जिनना देखी, माहरो मनडो रीझे. १२ दीपचंद्र पाठकनो विनयी, देवचंद्र ईम भासें, जे जिनभगतें लीण भविजन, तेहने शिवसुख पासें. १३ . [क्र.१,२ : जैनयुग, कारतक-मागशर १९८३, पृ.१४५-४६]
३. सहस्रकूट स्तवन सहस्रकट जिनप्रतिमा वंदिये, मन धरी अधिक जगीस, विवेकी, सुंदर सुरत अति सोहामणी, एक सहस चउवीस, विवेकी. स. १ अतीत अनागत ने वरतमाननी, तीन चोवीसी हो सार, विवेकी, बहुत्तर जिनवर एक क्षेत्रमा प्रणमीजे वारोवार, विवेकी. स. २ पांच भरत वळी ऐरवत पांचमे, सरखी रीते समाज, विवेकी, दश क्षेत्रे करि थाये सातसें, वीस अधिक जिनराज, विवेकी. स. ३ पंच विदेहे जिनवर साठसो, उत्कृष्टी एहि ज टेव, विवेकी, जिनसमाज जिनप्रतिमा ओळखी, भक्ते कीजे हो सेव, विवेकी. स. ४ पंच कल्याणक जिन चोवीसना वीसा सो तेहि ज थाय, विवेकी, कल्याण ने विध-श्युं साचव्या, लाभ अनंत कहाय, विवेकी. स. ५ पंच विदेहे हमणां विहरता, वीस अछे अरिहंत, विवेकी, शाश्वत प्रभु ऋषभानन आदिदे, चार अनादि अनंत, विवेकी. स. ६ एक सहस चोवीस जिनेशनी, प्रतिमा एकण ठाम, विवेकी, पूजा करतां जन्म सफळ हुवे, सीझे वंछित काम, विवेकी. स. ७ तीन काल अढाइ द्वीपमा, केवलज्ञान वहाण, विवेकी, कल्याणकारी प्रभु इहां सामटा, लाभे गुणमणि खाण. विवेकी. स. ८ सहस्रकूट सिद्धाचल उपरे, तिमहि ज धरणविहार, विवेकी, तिणथी अद्भुत ए छे थापना, पाटण नगर मझार, विवेकी. स. ९ तीर्थ सकल वळी तीर्थंकर सहु, इण पूज्यां तेह पूजाय, विवेकी, एक जीहथी महिमा एहनी, किण भाते कहेवाय, विवेकी. स. १० श्रीमाली कुलदीपक जेतसी, शेठ सुगुणभंडार, विवेकी, तसु सुत शेठ शिरोमणि तेजसी, पाटण मांहे दातार, विवेकी. स. ११ तिणे बिंब भराव्यां भाव-शं, सहस अधिक चउवीस, विवेकी, कीध प्रतिष्ठा पूनमगच्छधरू, श्री भावप्रभ सूरीश, विवेकी. स. १२
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