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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह टालई जिनप्रतिमानइ मान, दया दया करि टालई दान. ३ टालइ विनय-विवेकविचार, टालइ सामायिक उच्चार, पडिकमणानउं टालइ नाम, भामइ पडिया घणा तिणि गाम. ४ संवत् पनरनुं त्रीसइ कालि, प्रगट्या वेषधार समकालि, दया दया पोकारइ धर्म, प्रतिमा निंदी बांधइ कर्म. एहवई हूउ पीरोजिखान, तेहनइ पातसाह दिइ मान, पाडइ देहरा नइ पोसाल, जिनमत पीडई दुखमा काल. ६ लुकानइ ते मिलिउ संयोग, ताव माहि जिम सीसक रोग, डगमगि पडीउ सघलउ लोक, पोसालइ आवइ पणि फोक. ७ जोउ हीआ संघातिइं काई, बूडउ लोको कुमती थाइ, एक अक्षर ऊथापइ जेउ, छेह न आवई दुखनई तेउ. हिंसा धर्म दयाइ धर्म, कुमती पूछइ न लहई मर्म, श्रावक सहूइ पाणी गलइ, धर्म भणी किम हिंसा टलइ. ९ नदी ऊतरवी जिणवरि कही, कहउ तुम्हि हिंसा तिहां किम नही, करिइ कराविइ सरीखउं पाप, बोलइ वीतराग जगबाप. १० घोडे हाथी बइठा जाई, जिणवर वंदणि धसमस थाइ, कहउ तेहनइ किम न हुइ धर्म, कांइ ऊथापी बांधउ कर्म. ११ एवंकारइ कउं केतलउं, जाणउ भाइउ तुम्हि एतलउ, जिनशासननउ एह जि मर्म, वीतरागनी आज्ञा धर्म. १२ एणि उपदेसि दूहवाइ जेउ, पाग लागी खमावउं तेउ,
जीव सविहु-स्यु मैत्रीकार, जिनशासननउं एह जि सार. १३ - इति चउपई समाप्त.
[क्र.१,२ : जैनयुग, वैशाख–जेठ १९८६, पृ.३३९-४९]
३. वीकाकृत असूत्रनिराकरण बत्रीशी । ['जैन गूर्जर कविओ'मां आ कर्ता-कृति नोंधायेल नथी. 'गुजराती साहित्यकोश खं.१'मां आ संदर्भने आधारे ज नोंधायेल छ (पृ.४२०), पण त्यां कर्ताने लोंकागच्छना जैन साधु कहेवामां आव्या छे ते भूल छे. कृति लोंकामतना खंडननी छे अने कर्ता श्रावक पण होई शके. - संपा. ]
वीर जिणेसर मुगति हिं गया, सई ओगणीस वरस जव थयां
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