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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
(१०) श्री विजयदान सूरीश्वरें भ०, विसलनयर मझारिं, कुमति - कुद्दाल ग्रंथ बोळीओ, भ०, पेखंता नरनारि. भा० १३ वचन अरथ ते ग्रंथना, भ०, जिणि ग्रंथे आण्यां होई, भा० दसमें बोलें कह्युं भ०, अप्रमाण तिहां सोइ. भा० १४ (११) परपक्षी साथें वली, भ०, जे कोइ यात्रा जाइ, भा०
इरमो बोल कहिं हीरगुरू, भ०, यात्रा फोक न थाई. भा० १५ (१२) परपक्षी जे जोडियां, भ०, स्तुति स्तवनादि जेह, भा०
पूरवाचार्ये आदर्या, भ०, मांडीने कहेवा तेह. भा० १६ पालें पलावं ए बार बोल, भ०, श्री विजयदेव सूरींद, भा० तस पदपंकज सेवतां भ०, सकल संघ आणंद भा० १७ [जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स हेरल्ड, एप्रिल-जून १९१८, पृ.१६१]
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