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________________ ४३३ समयसुंदरकृत सत्याशिया दुकानुं वर्णन चोखा गोहूं च्यारि सेर, तूंयर पणि न मलि तेही, बहुला बाजरी पाड, अधिक उछाहुईं एही, सालि दालि घृत घोल-स्युं, जे नर जिमता सामटउ, समयसुंदर कहि सत्यासीओ, तई खवराव्यो बावटो. ७ अध-पा न लहै अन्न, भला नर थया भिखारी, मूंकी दीधउ मान, पेट पिण दूभर भारी, पमाडीयाना पान, केई बगरौ नै । कांटी, खावै खेजड छोड, सालि-तुस सबलां वांटी, अन्नकण चुणे के अइठिमें, पीयै अइठि पुसली भरी, समयसुंदर कहै सत्यासीया, एह अवस्था तें करी. ८ माटी मुंकी बयरि, मूक्या बइरे पणि माटी, बेटे मुक्या बाप, चतुर जे देता चाटी, भाइ मूकि भइण, भयण पणि मुक्या भाइ, अधिको वाल्हो अन्न, गइ सहु कुटुंब-सगाइ, घरबार मूकी माणस घणा, परदेशईं गया पाधरा, समयसुंदर कहि सत्यासीओ, तइ नव राख्या आधरा. ९ आपणा वाल्हा आंत्र, पड्या जे आपणां पेटां, नाण्यो नेह लिगार, बापइ पिण वेच्या बेटा, लाधउ जतिये लाग, मूंडिनइ माहे लीधा, हुती जेतरी हुंस, तीए तितरा हिज कीधा, कूक्या" घणुं श्रावक किता, तदि दीख्या-लाभ देखाडिया, समयसुंदर कहै सत्यासीया, तें. कुटुंब-विछोहा पाडिया. १० खातां खूटा गरथ, पछै घर वेच्या परगट, वलि ग्रहणा दीया वेच, किमही रहई घरनी कुलवट, पणि पसर्यो दुर्भक्ष, कहउ केही पर कीजइ, आपै न को उधारि, सत्त नही सगइ-सणेजइ, लाजते भीख लीधी नही, मुंढई पग सूजी मूया, समयसुंदर कहै सत्यासीया, तेह चाल ताहरा हूया. ११ १०. ग. भरइ न, ११. ख. चूक्या, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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