SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०९ बे ऐतिहासिक नोंध सं.१५९९ दुदैजी मेडतो वसायो. आगै मानधातारो हुतौ सं.१५५[१६५५ ?] जांम नवोनगर वसायो हलारमै. सं.१७३५ ओरगांवाद वसायो औरंगसा पातस्याह. सं.१७८३ सवाई जेसंघ जैपुर वसायो. सं.७०७ राजू वीर नारायण सिवांनोगढ करायो. सं.६०९ चित्रांग दसोरीयो चित्रोड वसाई. - इति श्री गावोटरी वीगत संपुरणं. सं.१८२२ गांव दीयावड नागोररी पटी कुपावत राज श्री ठाकुर सीवकरणजी लुणकरणोत लुणकरण केसरसंघोत केसरसंघ सब भए मोत सबलसंघ दलपतसंघोतरी सीवकरणजी दैकवर[कुवर ?] चैनसंघजी कुंवार कनजी कुवार सेरसंघ कुवार प्रथीराज. सं.८८० देहरा प्रतिमा धर्मनइ खातै कराया संप्रतिराजा. सं.६०९ दिगंबर थया. प्रथम भगवंत पछी हुआ कीत. प्रथम गच्छ नहि कोइ सहू कोई साध कहंता, पार्श्वनाथ गणधार तीके पूजायां मंता; श्र माहावीर संतान साधु किरिया अतिसारी, राजा दुरलभनी सभा मझि अति चरचा भारी. हार्या तिके कवला कह्या, जीत खरतर जाणीया, गछ दोय तिण कालमे सहू संधे वखाणीया. १ संवत बार चोवीस ( सं.१२२४ ) नगर पाटण अणहलपूर. हूवो वाद सुविहित चैत्यवासीसुं बहु परि; दुरलभ राजा सनमुख जिण हेलै जीतो. चैत्यवास उथाप देस गुज्जरहि वदितो, सुविहित गछ खरतर वीरूद दुरलभ राजा तिहां दियो; श्र वर्द्धमान पाटै तिलक सूरि जिणेसर गहगह्यो. २ तास परंपर पुन: हूवा गिरूआ गुणे गंभीर, परउपकारी परम गुरू अभयदेव गुणधीर. १ सं.७०० मानतुंगाचार्य भक्तामरकर्ता. सं.१००८ पोषधसाला ८४ गच्छै बाधीनै बेदा तीवारे पछी जै वीरला साधु वनखंडवासी रह्या. साधु श्रावकनी पूजा नही तिवारे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy