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________________ प्राचीन मध्यकालीन साहित्य संग्रह एवो उपदेश गुरूमुखथी सांभळी मंत्री वस्तुपाले वि.सं. १२८०मां श्री अर्बुदगिरि उपर प्रासादारंभ [प्रसादथंभ] थाप्यो पुनः वि. सं. १२८२मां प्रासादे कलश ध्वजदंड चडाव्यो. श्री नेमिश्वर स्थाप्या. त्यां श्री भुवनचंद्रसूरिए स्वशिष्य श्री जगच्चंद्रने तथा पंडित देवेंद्रने सूरिपदे कीधा. ते ज प्रासादमां बने भ्रातनी स्त्रीओए नवनव लक्ष द्रव्य वापरीने स्वस्व नामना बे आळीआ निपजावी नाम राख्यं ते ज वर्षमां श्री गीरीनार पर मंत्री वस्तुपाले उद्धार कर्यो. एटले श्री आबु, सिद्धाचल, गिरिनार ए त्रण तीर्थे अढी लक्ष मनुष्यो श्री देवभद्र, श्री जगच्चंद्र, श्री देवेंद्र प्रमुख श्वेतांबर अग्यार आचार्य पुनः एकवीस दिगंबर आचार्य युक्त यात्रा करी सकल संघ सहित मंत्री वस्तुपाल पाटणमां आव्या. ४०२ केटलाक दिवसे गुरूश्री भुवनचंद्रसूरि स्वर्गे गया, त्यारे मंत्रीए घणा आग्रहथी श्री देवभद्र, अने जगच्चंद्र अने श्री देवेंद्र एने विनति करी पाटणमां चोमासुं राख्या. चोमासुं उतरतां मंत्रीनी आज्ञा लई त्रणेए विहार कर्यो. भीलडी नगरमां श्री पार्श्व दर्शने आव्या. एवामां त्यां हिदूआणी देशथी श्री सोमप्रभसूरि पण विहार करतां भीलडी नगरमा सहर्ष पार्श्वदर्शने आव्या, त्यारे श्री देवभद्र, अने श्री जगच्चंद्र अने श्री देवेंद्र, त्रणे श्री सोमप्रभसूरिने वांदणाथी वांद्या. त्यारे श्री सोमप्रभसूरिए खरतर, स्तवपक्ष, आगिमयापक्ष, बेवंदणिक, उपकेश, जीरापली, नाणावाल, निंबजीय, इत्यादि आचार्यनी साक्षी विक्रम सं. १२८३ वर्षमां श्री सोमप्रभसूरि, श्री मणिरत्नसूरिए जावजीव आंबिल तपना धारक पुनः समता आदि [ गुण] मां आगळ जाणी स्वगच्छे लई श्री जगच्चंद्रसूरिने पोतानी पाटे स्थाप्या. श्री विजापुर नगरे श्री देवभद्र, श्री जगच्चंद्र अने श्री देवेंद्र ए त्रणेए चोमासुं कर्यं अने श्री सोमप्रभसूरि अने श्री मणिरत्नसूरि वडाली नगरमां चोमासुं रह्या. एटले पुनः मंत्री वस्तुपाल बीजी वार संघपति थया. श्री सोमप्रभसूरि श्री मणिरत्नसूरि अने श्री जगच्वंदसूरि, श्री देवेंद्रसूरि सहित श्री सिद्धाचल यात्राए जतां मार्गमां श्री वढवाण नगरमां संघ उतर्यो. त्यां श्रीमाळी ज्ञाति शा रत्ने दक्षिणावर्त शंखना महिमा वडे सात दिन तांई नानाविध सुखासिका ने भोजन तथा सहवस्त्र आभूषण पहेरामणी सकल संघने दीधी. त्यांथी मंत्री मोरवी प्रमुख नगरे स्वज्ञाति साधर्मिक प्रति नगरे नगरे गामे गाम पकवान आभूषण वस्त्रथी संतोषवा गया, श्री सिद्धाचल श्री गिरनारनी यात्रा करी देवकी पाटणमां संघ आव्यो त्यां मंत्रीए नूतन प्रसाद निपजावी श्री चंद्रप्रभस्वामिनो बिंब स्थाप्यो श्री सोमप्रभसूरि श्री जगच्चंद्रसूरिए प्रतिष्ठा करी. त्यां मंत्रीए स्वज्ञातिने घणी संतोषी. साधर्मिकने संतोष्या. अणहिल्लपाटणमां संघयुक्त श्री सूरि अने मंत्री आव्या. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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