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________________ तेजविजयकृत केशरियाजीनो रास केइ नागा भागा फाटा वस्त्रचीर, केइ कर जोडी वहे नेत्रथी नीर, मा. के. एक असवार वीकराल'६ अनूप, अरिफोजमां मोजमां फरे भूप. मा० के० १२ भाउ तातो काम आया रे तिणे ठाण, शुद्धबुद्ध कोइरी न रही ओलखांण, मा० के० रुद्रांणी रुद्रे नृप तिहु रे पूर, सुर सर्व जोईने हूया ससनूर. मा० के० १३ दसवीस अश्व सहीत सीरदार जाइ, [सदा]सीवरांम नाठो कंतार, मा. के. कोस च्यार जइनें लीओ वीसरांम, रणभोम माहे रह्यो सराजांम सार. मा. के. १४ सीवरांम कुमेद चिंते मनमांहिं, छीन छीन सेना हुइ रणभुमि तांहि, मा० के० हेमविजय कविरायनो सीस, तेजविजय मनमें निसदीस. मा० के० १५ दूहा कोस चिहुं उपर जई, दूष्ट लीओ तिहां सास; सीवरामें सरणो संग्रह्यो, तुज चरणे मुज वास. १ यारो, देखोनें क्या कीया, भुतखांनेर तोफांन; सारी संपत रणवट्ट रही, शुभट सवी हुया ज्यांन. २ फीके मुख नासी गयो, जांणीने ते दुष्ट, वीरकला गुण पेखीनें, देव सकल संतुष्ट. ३ दोनुं वीरे रणखेतमें, जोधा घुखल करेह, गोमुख यक्षे वीरने, हुंकारो पभणेह. ४ देवदेवी जस स्वामीनें, देइ गया नीज ठाम, असुरपति करे सेवना, लछी गइ वीण काम. ५ ढाल ८ होजी लूबेझंबे वरसालो मेह, आज दीहाडो धणरी त्रीजरो हो लाल - ए देशी होजी संजीवन रह्या नर जेह, तेह त्रुटक आवी मल्या, हो लाल. होजी के पाला गज तुरी राज, खंड अखंड सैन्यमां भल्या, हो लाल. १ होजी नीहाली संकर भुज राय, सीवरांम ताम वांणी वदे, हो राज. होजी हीदुयारो देव महाराज, कपट रच्यो अतिहें हृदे हो लाल. २ होजी केहवो कीओ इंणे काम, ठाम रक्षण कर्यो आपणो, हो लाल. होजी कवण न हुओ रे विचार, हाथे कीओ रे संतापणो, हो लाल. ३ १६.ख. असराल, १७.ख. वरसालारो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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