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________________ ३१० हंसरत्न अने उदयरत्न विशे सझायो (छेल्ली कृति अधूरी रही छे. पछी- पार्नु दुर्भाग्ये नथी. नहीं-तो आ सज्झाय पूरी मळतां तेमाथी उदयरत्नजीनां मातापिता तथा स्वर्गवास वगेरे संबंधी हकीकत जरूर मळी शकत. हजु पण खेडाना रसुलपुरना भंडारमा जे त्रुटक पानां पड्यां छे तेमां शोध करतां कदाच आ पार्नु जडी आवे तेवो संभव छे. हंसरत्नजी तेमना समकालीन हता. तेओ सं.१७९८मां मीयागाममां स्वर्गस्थ थया ने तेनी देरी पण त्यां थई छे ते कोई मीयांगामनो रहीश शोधी ते बाबतनो लेख वगेरे होय ते लखी मोकलशे तो आभार थशे. हंसरत्नना सुंदर अक्षरे लखेलां पुस्तको में खेडा भंडारमा जोयां छे.) __ [हंसरत्ननी गुजराती तेमज संस्कृत कृतिओ सं.१७५५ थी सं.१७८६नां रचनावर्षों बतावे छे (जुओ जैन गूर्जर कविओ, भा.५, पृ.१५७-५८ तथा गुजराती साहित्यकोश, खंड १, पृ.४९१) अने एमर्नु स्वर्गवास-वर्ष सं.१७९८ अहीं एमना परनी सज्झायोमां छे. संख्याबंध रासाओ अने अन्य कृतिओ रचनार उदयरत्ननो सर्जनकाळ सं.१७४९थी १८०३ सुधी विस्तरे छे (जुओ जैन गूर्जर कविओ, भा.५, पृ.७६-१०४ तथा गुजराती साहित्यकोश, खंड १, पृ.३१-३२). देशाईनी उपरनी नोंध एम सूचवे छे के पहेली सज्झायमांना ‘सोदर' शब्द तरफ एमनुं ध्यान गयुं नथी. परंतु 'जैन गूर्जर कविओ' (भा.५.पृ.१५७)मां ए स्पष्ट रीते नोंधे छे के उदयरत्न हंसरत्नना सहोदर अने काका-गुरुभाइ हता. उदयरत्न राजविजयगच्छमां सिद्धिरत्नमेघरत्न-अमररत्न-शिवरत्नना शिष्य हता अने हंसरत्न सिद्धिरत्न-राजरत्न-लक्ष्मीरत्न-ज्ञानरत्नना शिष्य हता. ज्ञानरत्न उदयरत्नना आम काका-गुरु थाय. - संपा.] १. अज्ञातकृत हंसरत्न सज्झाय गुरू गीरूओ गुणसागरू, पर-उपगार-प्रधान, परम दयाल परसोत्तम, परदुखभंजन पुरण. १ ते - गुरू हंसने वंदीए, लीजे धरमनुं वाहो, पंन्यास-पदने फरसवा, चतुरविध संघने चाहो. २ धरम-धुरें धोरी परे, निरमल निरवहे नित, धीर-गुण मेरू धीनिधि, वासें दसो यश[दश ?] कीरत. ३ चंद्रवदन चाहता घj, चतुर नर नयण-चकोर, वांणी जलधर वरसती, सुणतां भवीयण-मोर. ४ शास्त्रसंदेह निवारता, जाणे सुरगुरू बुध, । भगत भगवतना भाव-सुं, भजता [चरण] सदा शुद्ध. ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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