SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह संजम लेइ केवल देसना, ता० पडीबोह्या नरनारीना वृंद. ज० के० पुरब नवांणुं वार समोसर्या, ता० सिद्धिगीरीइं रूषभ जिणंद ज० के० ६ अष्ट घन घाती कर्म क्षय करी, ता० अष्टापदे वरीया सीवनार. ज० के० ज्योतिमें ज्योति अवीनासी थया, ता० रत्नत्रयमें अनंत अपार. ज० के० ७ यक्ष गौमुख चक्केसरी देवी, ता० जीनसासनने सुखदातार, ज० के० हेमविजय कविरायनो, ता० कहे तेजविजय जयकार. ज० के०८ दूहा पणयालिस लख जोयणां पोहलपणे सीवधांम, जाड्यपणें मध्य भागमां अष्ट जोयणां अक्षय ठांम. सीद्धसला मध्य भाग्यथी उतरति जिहां छेह, मक्षिकापांख समान छें फटीक रयणमय तेह. एक जोयण रे वीस में भागे सीद्धजीव वसंत, आयो अलोक तेह उपरें एक जोयण उचंत. ज्योति सरूप सीद्ध जीव ए अजर अमर नीराकार, नीरागी अकलंक ए परमातमपदधार. ज्ञांन दर्शन अनंतमें चारीत्र विर्य अनंत, चऊद राज तिन लोकना मनोगत भाव लहंत. Jain Education International ३. ख. चोवीसमें ४. क. हाडारारी जायाजी ५. क. चानें झीलीजी For Private & Personal Use Only 9 - २ ३ ढाल २ वागो बन्यो बुधसंघ केहरो राज, पंच महोरारी पाघ हाडारायाजी, थाने झालीजी* वच्चे छे, नरवर मत चालो, राज ए देशी मारी अरज सुणीजें पिण निज सेवक विनवें, राज, दुर थकी रें अरजी करूं, राज, कृपा रे सुहग - शुभ - लेहरथी, राज, [ संवत अढार तेसठामां, राज, सीद्धस्वरूपी सहजानंदमें राज, मग्न रहो छो महाराज, धुलेवारायाजी, केसरीया जीनराज ए आंकणी मनवंछित रे निवाज. धु० मा० १ पिण तुम ध्यांन रे हजूर, धु० मा० होई किंकर सनूर. धु० मा० २ जोर मच्यो जंगपुर, धु० मा० आप ही आप असवार हुइ, राज, किओ सुजस ने सनूर. धु० मा० ] ४ ५ www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy