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________________ हंसराजकृत हीरविजयसूरि चतुर्मास लाभप्रवहण सज्झाय जगत्र सुखी थयु पूज्य पधारइ, उत्सव निति मंडाण; समोसरण रचइ संघवी उदयकरण प्रणमइ गछपतिभांण रे. भवीआं० ५८ परव पजूसण रंगि कीजइ, फलीआ धर्मव्यापार, वस्तु अपूरव बहुमूल आवइ, खामणडा करइ सार रे. भवीआं० ५९ हरमजी वाहण बखाइ आव्यां, हुआ लाभ अनंत, आस फली आगे मसवाडइ, पुण्य सगाल हवा संत रे. भवीआं० ६० श्रीपूज्य - वांणी सफलई फली, न्यान दरिसण चरित्र, कार्त्तिक मास ते करसण पाकां, देसवृत्ति सर्ववृत्ति रे. भवीआं० ६१ देसदेसना संघ पधारइ, कागल गुरू तणा ल्यावइ, उछव महोत्सव करई वधावा, प्रभावना संघ करावइ रे. भवीआं० ६२ उपधान मालारोपण महाव्रत, चउथां व्रत वली बार, बिंबप्रतिष्ठा अने अनशन, बहुत हूआ लाभ अपार रे. भवीआं० ६३ श्री गुरू हीरविजय सूरीसर, सकलचंद उवझाय, पंडित श्री जयविमल मुनीसर, गणि विद्याधर नमुं पाय रे. भवीआं० ६४ गणि खडा गणि कृष्णविजय गणि, लक्ष्मीविजय गुरू संगि, धर्मविजय गणि मेघविजय गणि, मुनिविजय ऋषि सारंग रे. भवीआं० ६५ पद्मविजय ऋषि सूरविजय ऋषि, जयविजय ऋषि न्यानहर्ष, भावविजय ऋषि देवविजय ऋषि, सेवंता हुइ सुख रे. भवीआं० ६६ गणि कुलधर ऋषि मोटो तपशी, गणि जिनकुशल वइरागी, करइ वयावच मुनिवर केरां, संयम- स्युं लय लागी रे. भवीआं० ६७ चाहु ऋषि खेमकुसल रिषि, नागजी विवेकविमल कृपाचंद, भावकुशल रिषि भीम, लब्धिविजय नांनडीउ रत्नचंद भवीआं० ६८ साध्वी प्रभुश्री लालश्री साहिबश्री, माणिकसुमति रतन्न, चारित्रसुमति श्री विनयश्री, न्यानसुमति ए धन्य रे. भवीआं० ६९ चंपश्री कनकश्री लाभसुमति ए, वइरागश्री गुरू पासइ, च्यालीस ठाणइ श्री खंभनगरमां, हीरजी रहिया रे चउमासइ. भवीआं० ७० खंभनगरनुं संघ वइरागर, पंचविध दान दातार, २८९ कनक चीर सोनहरी गंठोडा, वरसइ जिम जलधार रे. भवीआं० ७१ जिहां जिहां गुरूनी आज्ञा वरतइ, तिहां तिहां उत्सव थावइ, दिन दिन चढतई रंग सोहावइ, हंसराज गुण गावइ रे. भवीआं० ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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