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________________ विवेकहर्षकृत हीरविजयसूरि (निर्वाण) रास २७९ ढाल सुप्रभाति सहू संघ मिल्या, सुणि रातिनी वात नई. जाणिनि निर्णय वली निर्वाणनउ ए, इक अचरज बीजुं दुखि भर्या, अति गहबर्या हिअडइ, हिअडइ नईं सुणि अणसण चउविहारनउ ए. ११९ श्री गुरू संध प्रति भणई, सुणो मानवी आणनईं, आणनईं शासनपति जिन वीरनी रे, मुझ आणां जस वालही, तिणि पालवी आणनईं, आणनईं श्री आचारयनी सही ए. १२० अंगपूज सहू संघ करईं, सुप्रभातिथी मांडीनईं, मांडीनईं रूप कनक मुद्रा घणी ए, अढी पुहुर जिहां दिन चढई ए, कोइ भाविक वद्धावईंनईं, वद्धावईंनईं मुक्ताफलि करी गछधणी ए. १२१ सुखसमाधि निर्वृति घणी, सोवन तणी कांतिनईं, कांतिनईं झलकई अंग सुहामणुं ए, मंडाणा सबल मंडाण ए, तिहां आवईं राणोराणि ए, रायराणा ए निरखईं मुख हीर तणुं ए. १२२ जिम श्री वीर जिनें, देशना छईं दिवसनी दीधी नईं, दीधी नईं जिनशासनि हितमति भणी ए, तिम संध्या- पडिकमणुं सहू सांभलईं संघनईं, संघनईं करावईं स्वयं तपगछधणी ए. १२३ जूउ तपतेज गुरू हीर, कांई चढत लई वांन जी, ध्यानईं जी बइंठा पडिकमणुं करी रे, गणईं नुंकार ते पडवडा पदमासन पूरीनईं, __ पूरीनई ध्यान श्रीमंधिर अनुसरी रे. १२४ भाद्रव सुदि अग्यारसिं शुभ गुरूवार योगिं जी, सिद्धियोगि जी श्रवण नख्यत्र सोहामणईं जी, राति घडी च्यार पांच जातइं, नउकारवाली पांचमी, पांचमी मांडतां जगगुरू ईंम भणइंजी. १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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