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________________ रत्नविजयकृत अमदावाद तीर्थमाळा २४५ अनुष्ठान करंता करवा पर अपमान, मांजार तणी परि क्रियानो तोफांन; क्रोधी ने कपटी लंपटी रसना जेह, छल हेर कहीणा कुगुरू कहावे तेह. १२ जे साधु थइने करे कुशीलाचार, पद तेहने करतां विधि वंदनव्यवहार; जिण-आणा विराधे करे अनंत संसार, महावीर पयंपे महानिशीथ मझार. १३ दोष उत्तर देखी राखो समपरिणाम, शुद्ध धर्म सुणावे एहि ज उत्तम काज; मल मांहि मोती लेवानो नहि दोष, उपदेश सुणीने धरज्यो मन संतोष. १४ दोहा कामभोग मेला अछे, आर्त रौद्रनां बीज; धन्य जन एहथी ओसर्या, प्रगट्या जस बोधबीज. १ रूपविजय विद्यानिधि, विमल उद्योत सु संत; वीरविजय वचनावलि, थया थवीर गुणवंत; २ शेठ हठिसिंघ सांभरे, जेहना गुण अभिराम; विसार्या नवि वीसरे, सज्जन जनना नाम. ३ काम-कलण बुझा[डा] नहि, तिन समय अणगार; श्रावक ने वलि श्राविका, वंदो वार हजार. ४ ढाल ४ : हवे श्रीपालकुमार - ए देशी तपगच्छनो सुलतान सिंह सूरीश्वर जग जयोजी; सत्यविजय अभिधान, शिष्य विभूषण तस थयोजी. १ कीधो धर्म-उद्धार, संवेगी-नभ-दिनमणीजी; कपूरविजय पट्टधार, उज्ज्वल कमला तस तणीजी. २ पदकज-मधुकररूप, क्षमाविजय गुण-आगलाजी; जिनविजय जिनरूप, पाटे तेहनी निरमलाजी. ३ वृद्धिविजय पंन्यास, हंसविजय गुरू गुणनिधिजी; मोहनविजय पास, आराधननी बहु विधिजी. ४ तेहना शिष्य प्रधान, अमृतविजय सोहामणाजी; शीतल चंद्र समान, अतिशय गुणगणना मणाजी. ५ पालीपुरने पास, हाथ प्रतिष्ठा सांभलीजी; झाझो प्रभुनो उजास, जिन जोतां मति अति भलीजी. ६ काजल केशर जात, नयणे जइने निहालजोजी; एहवा तस अवदात, गुण गीरूआ संभालजोजी. ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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