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________________ आबु तीर्थ २३५ हाथनी रेखा देखी अनुसारें, एहनो वर बांधे पातिसाहे बारें; एहवो वेढालो वाणीआ माहें; कुण आणे बारें पातसाहि साहे. १४ विमल मामाने मिलवा गयो चाली, ओ बांधे पाट स्या आज खालि; सेठनें बेटी सबल वाहली, ए जोइ जे कन्या विमलने आली. १५ बाइनो भाइ काको ने मामो, साथें सगाई करवाने सामो; विमलने पोहता च्यारे ही भाया, मा जाणे माहरे लहिणायत आया. १६ खतमें तालग माहरो जो होसी, विमल देशी तें दूधे पग धोसी; बे कर जोडी बोलीओ जोसी, पाटणथी आया पूरण दोसी. १७ खत पत्रनी वात न कांइ, विमल ल्यावो जो वांटां वधाइ; काको मामो में कन्यानो भाइ, मेतो आव्या छां करवा सगाइ. १८ किमही कहतां किमही कहवाईं, माहरे पाने थें चूनो न देवाइं, पुण्य आंकुर आगलि जणाइ, आखर अबळाथी सबलो ईम थाइं. १९ खेवे वावो. विमलनें माता, प्राहुणा ढील न करें तिहांकण जातां; मामा-सुं मलीआ पूछे सुखसाता, विमल-हाथें सुख माओ विधाता. २० मामा साद करें भाणेजाभाइ, आबु इणि समवड ईंडु चढाइं; साथें सालो में सयण विचारें, विमल बांधेसे पातिसाहि वारे. २१ पगें लागीने नालेर दीधुं. रूपिओ देहतें तिलक कीg; सगा जीमाडी सोभाग लीधो, पाटण सुधी पण पोहचाड्यो सीधो. २२ (जूनी प्रतमांथी) [जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स हेरल्ड, एप्रिल-जून १९१८, पृ.१९१-९२] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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