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अनंतहंसकृत ईडर चैत्यपरिपाटी
२२७ हुँ नवि मागुं भोग योग न० मणि माणिक भंडार, एक जि मागुं रिसह जिण न० सासय शिवसुख सार. प्रहि ऊठी जे नर भणइ ए, न० चैत्र प्रवाडि रसाल, ते तीरथयात्रा तणुं ए फल पामइ सुविशाल. ४३
(कलश) तवगच्छ दिणयर लच्छिसायर सुमतिसाधु सूरीसरो, श्री हेमविमल मुणिंदु जिनमाणिक गुणमणि-सायरो; संथविउ श्री गुरू अनंतहंसहिं सीसलेसि जिणवरो,
श्री संघ चउविह सुख्ख बहुविह रूद्धि वृद्धि सुहंकरो. - इति श्री इलदुर्गमंडन श्री आदिनाथ प्रासाद चैत्यपरिपाटी लिखिता. व्य. रूपा भार्या श्रा. राजलदे पुत्री श्रा. जीबाइ पाठनार्थं. शुभं भवतु.
[जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स हेरल्ड, फेब्रुआरी १९१७, पृ.६५
तथा जान्युआरी १९१९, पृ.१-६]
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