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________________ २१५ जगा-गणिकृत सिद्धपुर चैत्यपरिपाटी जगजीवन रे श्री सुपासजिन नायकू, तुम मूरति रे भवियणनई सुखदायकू; चिंतामणी रे कामकुंभ सम लेखीई, तुम मूरति रे देखीनइं मनि हरखीइ. १६ हरखीई तुम मुख देखी, जिनपति-पवरभुषण चाहीइ; तुम श्री सुपास जिणंद वंदन भवियमन ऊमाहीई. १७ ढाल हिव त्रीचं जिणमंदिर पे, भुहरा माहि अछई सविसेखुं; देखं झाकझमाल तु जय जयु देखं झाकझमाल तु. १८ ते माहि छईं प्रतिमा च्यार, रूप तणु नवि लाभु पार; दीठई हरख अपार तु जयु० १९ जाणे सासय जिण-अवतार, समचउरस भलु आकार; वंछितफलदातार तु जयु. २० देस-देसना भवियण आवईं, पूज करी वर भावन भावईं; ___ गावईं गीत रसाल तु जयु० २१ वरधमान जिननायक केरी, प्रतिमा तीन अछईं सु-भलेरी; भेरी भुंगल नाद तु जयु. २२ चउथी नेमिनाथनी जाणुं, पीतलमइ श्री संति वखाणुं; हियइ हरख ज आणु तु जयु. २३ भाविं भगति जे तुम वंदइ, सयल पाप दुह रासि निकंदई; नंदई ते चिरकाल तु जयु. २४ इणि परि भुंहरइ बिंब नमीजई, श्री सुपास वलतां प्रणमीजइ; नेमिनाथ सुख दीजई तु जयु० २५ हिव चउथइ जिणमंदिरि जास्युं, श्री चंद्रप्रभ जिणवर गास्युं; थास्युं सबल सनाथ तु जयु० २६ ढाल मालंतडेनी तिहांथी आघा वलिया ए मालंतडे, अतिमोटइं मंडाणि सुणि सुंदरी अति मोटई मंडाणि रे, भेरी भूगल वाजतइ ए मालंतडे, ढोल नफेरी जाणि, सुणि सुंदरि० २७ कोकिल कंठ मनोहरु ए मालंतडे, श्रावी दिइं वर भास, सुणि गीत गान गंध्रव करई ए मालंतडे, पुहुचइ वंछित आस, सुणि० २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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