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________________ २०४ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह सामि सीमंधरो नवल प्रासादि हि, वंदउ अभिनव आदि जिण; संतिकरण सिरि संति जिणेसर, मरूदेवी सामिण थुणउं गुण. १९ उलखा झोलिहिं देव देखेवि, संति जिण चेल तलावलीए; ईण परि विमलगिरि सयल तित्थावली, पणमुं भगतिहिं अति भलीए. २० पासिरि सेहर नमु नेमीसरं, ललितसरोवरपालि वीरं; पालीयताणइ पास जिणेसरं, पणमिय पांमि सो भवह तीरं. २१ धनु संवच्छरो विगयमयमच्छरो, धनु मासो वि मंगलनिवासो; । धनु सो पक्खो उ विविह बहू सुखउ; दिवसउ निम्मलगुणनिवासो. २२ अज्ज मई माणुसाजम्मफलु लीधउ, कीधउ अज्ज सुकयत्थ कुलो; अज्ज मह पूरव पुन्नतरू फलियां, टलियउ अज्ज मह पावमलो. २३ अज्ज मह कामघट कप्पतरू तुठ्ठउ, वुठ्ठउ अंगिहिं अमीयमेहो; सेजेजे जे जिणगुण अभिनंदिया, वंदिया सुंदरू रूवगेह. २४ एय सिरि चैत्रपरवाडि वीवाहलो जो पढई जो मुणई जे कहंति; विजयवंता नरनारि सेज फल जात्रह निम्मल ते लहंति. २५ - इति सेजय चैत्रपरिपाटी वीवाहलो समाप्त. [जैन सत्यप्रकाश, मे १९४०, पृ.३०६-०७] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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