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________________ १८९ धनविजयकृत बे नानी कृतिओ - [कवि तपगच्छ कल्याणविजयना शिष्य अने 'कर्मग्रंथ बालावबोध' (र.सं.१७००)ना कर्ता छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ भा.३ पृ.३४२-४३ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.१९१. आ कृतिओ त्यां नोंधायेली नथी. – संपा.] १. शत्रुजय स्तवन सकलगणिगजेंद्र गणि श्री ५ श्री विनयविजयगणिगुरुभ्यो नम:. सरसति मनि मंदिरि मई वासी, निज सिरि गुरूना चरण उपासी, पुन्यजोग इण अवसर पांमी, थुणस्युं श्री शेजय स्वामि. १ अनंत गुण मइ किम कहीइ ?, गुण देखि मुंगा किम रहिइ ? । एह सिख मन माहि वहिइ, तो तुझ पद-पंकज-सुख लहिइ. २ ढाल मेरूगिरि चरण करि नर जथा कुण चढइ ?, चऊद पूरव सुयं पर जथा कुण पढइ ? जलधिजल सयल मवि भुजबलइ कुण तरइ ?, विमलगिरि-महिमाना जथा कुण करइ ? ३ विमल० आंकणी. गगनना गुण (कहो) अंगुलि कुण गणइ ?, पूरव दिसि विना झाण कहो कुण जणइ ? कामधेनू विना मेरू-त्रिण कुण चरइ ? विमलगिरि० ४ सूर-किरणे करि चीवरं कुण वणइ ?, मूकि मुख चउद विद्या कहो कुण भणइ ? हाथीयां साथिइ द्याडा कहो कुण चरइ ? विमलगिरि० ५ चंपपुप्फे जथा भमर कुण रणझणइ ?, विंझ-गिरि-गजघटा सीह विण कुण हणइ? करतलइ सयल पृथ्वी तथा कुण धरइ ? विमलगिरि० ६ तहवी सहकारतरु-मंजरी-स्वादथी, कोकिलो जिम लवइ तम गुण लादथी, तुझ तणा गुण भणूं बुद्धि लवलेशथी, स्वामिनामइ होइ सिद्ध सुवसेश[विशेस]थी. ७ राग आसाउरी श्री शत्रुजयदेव ! दयापर !, तारि तारि मुझ तार रे, हुँ तुझ चरणसरण करुणाकर ! जनम-मरण-भय वार रे. ८ श्री शत्रुजय० आंकणी तुझ दीठई मुझ मन बहू हिइसइ, जिम नयनानंद (चंद) चकोर रे, दिनकर-किरण कमल जिम विकसइ, जिम शाम घनाघन मोर रे. ९ श्री. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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