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________________ १६१ लावण्यसमयकृत रावणमंदोदरी संवाद ('विमलप्रबंध'ना रचनार प्रसिद्ध जैन कवि लावण्यसमयनी आ कृति सं.१५६२मां रचायेली छे. आ रचाया पछी त्रण ज वर्षे सं.१५६५मां जैनेतर कवि श्रीधरे जूनागढमां 'रावणमंदोदरी संवाद' रचेलो के जे श्री फार्बस गुजराती सभा तरफथी गत वर्षमा प्रकट थयो छे. कवितामां संवाद रचवानी प्रथा हती अने ते प्रमाणे लावण्यसमये ज ‘करसंवाद' अने अन्य जैन कवि सहजसुंदरे ते ज अरसामा ‘यौवनजरा संवाद' रचेल छे. (जुओ मारो जैन गूर्जर कविओ, प्रथम भाग, पृ.७९ अने १२८) [बीजी आवृत्ति, भा.१, पृ.१६२ तथा पृ.२५४] आ कृतिनी सं.१६८२मां एक ज लेखकनी लखेली बे प्रतो मारी पासे छे. छतां बनेमां पाठांतरो मळे छे. ते कौंसमां के टिप्पणीमां मूकेल छे. आ सिवाय अन्य एक पण प्रत क्यांयथी उपलब्ध थई नथी; बीजी जूनी प्रत मळे तो केटलीक अशुद्धिओ टळे. आ ढूंकी कृति छ अने विक्रम सोळमा सैकानी छे तेथी ते गुजराती प्राचीन साहित्यना अभ्यासीने उपयोगी थशे एम समजी जेवी प्राप्त थई छे तेवी उतारी पाठांतर सहित अत्र मूकेली छे.) [कवि अने एमनी कृतिओ माटे जुओ जैन गूर्जर कविओ, बीजी आवृत्ति, भा.१ पृ.१६२-८६ तथा गुजराती साहित्यकोश, खंड,१, पृ.३८७-८८. प्राप्त प्रतो ऋ. राघवे लखेली छे एम पुष्पिकामांथी स्पष्ट थतुं नथी. ऋ. राघव माटे ए लखायेली पण होई शके. आ कृति शिवलाल जेसलपुरा संपादित 'कवि लावण्यसमयनी लघु काव्यकृतिओ' (१९६९)मां पण प्रकाशित थयेली छे. अहीं एना पाठोनो पण लाभ लेवामां आव्यो छे. चोरस कौंसमा छे ते एना पाठो छे. – संपादक] राग श्रीराग [मंदोदरी:] सूतलो सींह जगावीउ, नडीओ वासग नाग रे, सीत हरी ति स्युं कर्यु, रूठा रामना पाग रे. १ सांभलि रावण राजीया, जासे महियलि माम रे, सती सीता तई कां हरी, विरी वंकडो राम रे. सांभलि. २ [रावणः] गिहिली तूं गामटि गोरडी, बाला ! बोल म बोलि रे, बांहि तणू बल माहरूं, मेर समोवडि तोलि रे. सांभलि. ३ सुणि रे मंदोदरी माननी, बोले रावण राण रे, कवण कहीइ मझथी वडो, समरथ सपराण रे. सांभलि. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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