SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ Jain Education International प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह बानिक बाग, साहेली. १४४ एक वसंत अने वली राजे, बीजी त्रीजुं रमणीरूप सुरंगे, चोथो अंग सोहाग, चोथो अंग सोहाग ते मांहे, पांचमो खेल रसिक उच्छाहें, ए पांचे काम सैन्य लइ साजे, एक वसंत अने वली राजे. १४२ सामासामी रहने साहेली, सरखासरखो संग, बेडुं बलिया विच सोहे, घोली केसर रंग, घोली केसर रंग ते वरणी, चपल गतें फरती मनहरणी, माचे धूम गुलालनी पेहेली, सामासामी रहीने फिरती पिचकारी रही वरसी, कुमर करे विचार, आपणे हवे सरकीने कोरे, नीकलवु निरधार, नीकलवुं निरधार ते आमां, जूथ भेल पाडी तेवामां, रोकी नेमने घेर आकर्षी, फिरती पीचकारी रही वरसी. १४५ मधुरी महुअर वीणा वागे, ढोलक ताल मृदंग, डफ झालर झणके छे झाझी, चरणें वाजां चंग, चरणें वाजां चंग चोफेरी, शूर शरणाई सोर नफेरी, भणणण भेरी भुगलां आगे, मधुरी महुअर वीणा वागे. १४६ श्रीमंडल सारंगी वाजे, दोकड ने करताल, खंजरी खंजननयणीने कर, घोर अवाज रसाल, घोर अवाज रसालथी रणके, सतार ने तंबुरा झणके, विधविध वाजे अंबर गाजे, श्रीमंडल सारंगी वाजे. १४७ तेले ने तंबोले भीनी, तरूणी टोलटोल, लाजनी पाज लोपीने मुखथी, गाये फागुण गोल, गाये फागुण गोल धुमारी, थोकेथोक रहीने नारी, करती आली नेमीसरनी, तेले ने तंबोले भीनी. १४८ लाल गुलालना पाने ने पुखराजे पिचकारी ग्रही हाथ रढिआली, पहोंचे पहोंची जोर जवाली, थाल भरीने, आवे सजनी-साथ, जडीअल, पिचकारी ग्रही हाथ, छांटे छल-शुं दोट करीने, लाल गुलालना थाल भरीने. १४९ तेम तात्युंनो नाद, पाय - ठमकले कटिमेखल घुघरी खलके लइ रहेता वाद, बोले, मादलिया, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy