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________________ प्राचीन जैन कविओनां वसंतवर्णन ( आ पछी माह मासनी थंडी, ने वसंत ऋतुनी वात नीचे प्रमाणे जणावे छे.) आगल माह फाल्गुन रूतु आवी, भोगीजनने मनमां भावी, तुमने पंथे शीतल वाय, अमने तो कांये नवि थाय. जामे शीतल कृश ते नीर, नवि कोइ रहे सरस ज तीर, तिहां ते अमे बेठा तापुं, इम करीने शिशिर रूतु कापुं. तुमे सुओ भीडी ओढी, उपर वली शीरख ओढी, तुमे तिण रूते पंथ न चालो, बेठा ए मंदिरमें महालो. आगल वसंतरूतु आवे, घर मुकी कोइ नवि जावे, गावे तेइ गुणीजन फाग, तुमने नहि जावानो लाग. कहु कहु कहे परभृत- तनया, कही कुहु ते अमावस्यातनया, ते तमभर तश्कर-राण, फरे मन्मथ इ बाण. नर भोगीने लुंटे वाटे, अम योगीमां ते शुं खाटे. अमे तस जीतीने बेठा, अमे ब्रह्मचर्यगढमां पेठा. हवे त्रिगुण ते मंद समीर, विरहि न शके धरीने धीर, ए दिन छे भोगी केरा, अम सरिखा ते अनेरा. ( उक्त रासमां ज बीजे स्थळे मुनिश्री रत्नपालने पूर्व भवनी वात कही संभळावे छे, मां धनपाल करीने श्रेष्ठीनो पुत्र वसंत आवतां वनमां वसंत खेलवा जाय छे ए वखतनुं वसंतवर्णन करवामां आव्युं छे.) Jain Education International खंड ४ ढाल १४ लुहारण जायो दीकरो लुहारी हे ए देशी एम रहेतां त्यां अनुक्रमे, सोभागी है, आव्यो मास वसंत के लाल सोभागी है. वन विहस्यां फुलें फलें, सोभागी है, पवन मिले महकंत के लाल सोभागी हे. १ मंजर पंजरने भरे, सो० भूमिये मल्या सहकार के ला० भारे रखे धरणी धसे, सो० तेणे पीक करेय पुकार के ला० २ नील भ्रमर गुंजे घणा, सो० जीहां विकस्यां अरविंद के ला० कुटील नयन मनुं वारवा, सो० कीधा ए कझलबींद के ला० ३ चंपकवन प्रिय योगथी, सो० कंपे धुणे अंग के ला० है है है मुझ उपरे, सो० नावी बेसे भृंग के ला० ४ १३७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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