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________________ १२० प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह गूर्जर कविओ, भा.३, पृ.२७९ तथा गुजराती साहित्यकोश, खं.१, पृ.३८३. – संपा.] सखीरी, माह मास किम कीजे, नेमजी तिलमात्र न भीजे, बने रंगभरि सेज रमीजे, ते जीवित सफल गणीजे, हो लाल, नेमजी नेमजी करती. ८ सखीरी, फागण मास सुहावे, नरनारी चंग वजावे, तिहां अबीर गुलाल उडावे, साहिब क्यु अजीय न आवे, हो लाल. ९ सखीरी चैते न करूं सिणगारा, नवि पहिरूं नवसर हारा, भोजन लागे मुझ खारा, प्रीतम विण कवण आधारा, हो लाल. १० १२. भावविजयकृत 'नेमिनाथ वसंत'मांथी (कर्ता विजयदेवसूरिना शिष्य छे.) [कर्ता के कृति 'जैन गूर्जर कविओ' के 'गुजराती साहित्यकोश खं.१'मां नोंधायेल नथी. - संपा.] राग धमाल आयो जब ऋतु सुरभिमनोहर, सब ऋतुके सरदार, बल जाउं. . नेमकुमार खेलन चले हो, लीनो है जदुपरिवार. ब. १ मोहन जिन खेले रंग भरी हो, अहो मेरे ललना, मोहत सब नरनार. मोहन० आंकणी. फूल अमूलको टोडर पेर्यो, बडो बहोत सोभाग, बल. लाल गुलाल अबीर उडावत, गावत गुणिजन फाग. ब. मो० २ सरस कुसुमरस केशर-मिश्रित, चंदन-चर्चित अंग, ब. कनक-अधिक छबि निरखत जाके, जनमन हरख सुरंग. ब. मो. ३ सार शृंगार हार मोतिनको, पहेरी प्रभुपें आय, ब. खेलत सकल गोपाल-बालिका, घेर लीयो यदुराय. ब. मो० ४ कोमल कमल विमल दल भरकें, छिरके निर्मल नीर, ब. अति बहु हसत वदन धरि नीको, व्याकुल व्रज परिवार, ब. मो० ५ वचन रसाल बाल गोपिनके, बोले बोल बनाय, ब. वस आये प्रभु बहोत दिनोंके, छोडेंगें व्याह मनाय. ब. मो. ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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