SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह सुंदर सहज[सेज] गमे नहीं, सूतां रे निंद न आय; तोहि विना प्रभु ! माहरे, इण परि दिन किम जाय ? १७ दुहा एम न कीजीइं, सुण प्राणनाथ, पालीए प्रीतडी में ग्रहीए हाथ; मयणनो वाश(स) तें मास फाग, सांम ! संभारीइं एह ज लाग. १८ ढाल फागुणना दिन फुटरा, आकरा लागे रे मुझ; विरह तपें तन माहरो, मन भावे नही तुझ. १९ के खेले लाल गुलाल सूं, अबीर अरगजा ख्याल; हुं रही एक दुभागणी, आव्या नि(न) नेम मयाल. २० के जिन पूजे रे पदमणी, भांमनी आपद दूर; के नृत्य नाचे रे नवनवा, पाय पखाले जै कुर. २१ के प्रीउ संगे रे रंगे रे, ढंगे खेले बहु ख्याल; के गोपी गजगति जेहवी, ठारे अनंग चोसाल. २२ चिहु दिश तरवर चीतर्या, नीतर्या चैत्र सुवास; जाइ जूई नवमालती, मोगरा मरवो जे खास. २३ दमणो चंबेली रे चंपके, षटपद लागी रे चित्त; नेम तणी हुं वाटडी, एण रीते जोउं रे नित. २४ विरहणी-विरहनी वातडी, रातडी गमीइं रे केम ? नीर विना जिम माछली, नेम विना निश एम. २५ के मनमें घडी साहिबा ! खिण वरसां सो थाइ; ते पोहरनी सी वातडी, मास वरस किम जाय ? २६ मंदिर सूनें महिला तणुं, मोहन ! किम रहे मन ? कोकिल कलकुंजित करें, तिम दहे विरहिणी तन. २७ नयणे रे निंद आवे नही, अति तीखी चंद्रनी रात; झंखी रही प्रिउ जीभडी, वाल्हाविरहनी वात. २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy