SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नेमविजयकृत नेमि बारमास Jain Education International दू पणि जगि जाणने स्युं कहीजे, मूर्खने वेणम्यं सीख दीजे, तो हवे नेठ ए ज्येठे ज आवे, कला कामिनी केलि सुहावे. २८ [ ढाल ] ज्येठ तपे अति आकरो, सी करो एवडी धीज, आवो तो उष्ण निवारीएं, सीत संचार्ये पतीज. पंथी पणि पंथी आकला, नारिने मिलय अनेक, पाए पडी, प्रभु, वीनवुं, आणा ने चित्त विवेक. २९ अगनि तणी परि परजले, उत्तम एह आवास, भूमि तपे अति भूंडी रे, किम रहे तनमें रे सास. खिण मंदिर खिण बाहिर, रयणी केम विहाय, प्रीतम - विहूंणी प्रेमदा, तलफ तलफि खिण थाय. ३० पशु - पुकारथी चाल्यो रे, पाल्यो न एकण बोल, काजि ते आपणे रागीयो, [त्यागीओ] निगुण निटोल. नवभवनेह निवारीयो, वारीयो नवि रह्यो नाह, नवयौवन-वय कामिनी, यामिनी लीधो न लाह. ३१ दू भरि भरि जोर नीसास मूके, नयणथी आंसुडा खिण न चुके, काया कोमल तेज सीझे, निरदयी नाह तोहे न रीझे. ३२ [ ढाल ] आकरी रीत रे आसाढनी, विरहनी व्यापी छे पीर, वाये घटा घन मेघनी, अति स्याम वरसे रे नीर. कामकलारस केलवी, केकी करे रे किंगार, बापीयडो पीउ पीउ करे, वीजलीयां झबकार. ३३ यौवन जाये साहेलडी, जाणे जलना रे पूर, कहेने कहुं दु:ख, बहेनडी, प्रीतम रहे घणुं दूर. साले खिण खण सुंदरी, दिवस ने रजनीना भोग, धिरता नही मन मांनिनी, दूहलो नाह-वियोग ३४ For Private & Personal Use Only ८९ www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy