SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केटलांक ग्रंथालयोनी अमे मुलाकात लीधी. आ लेखसूचि तैयार करतां एक बीजो निर्णय ए पण कर्यो के आ बधी सामग्रीनी झेरोक्ष नकल करावी लई ए सामग्री साचवी लेवी. आ ‘प्रीतिपरिश्रम' समी लेखसूचिनुं काम १९८४-८५थी शरू थयुं अने छेवटे १९९२मां श्री महावीर जैन विद्यालय (मुंबई) द्वारा प्रकाशित 'विरल विद्वत्प्रतिभा अने मनुष्यप्रतिभा' पुस्तकमां श्री मोहनभाईनुं जीवनचरित्र अने लेखसूचि प्रगट थयां. आ लेखसूचिमांना लेखोनी ७२०नी संख्या ए मोहनभाईनां अग्रंथस्थ लखाणोनी विपुलतानी निर्देशक छे. ए पुस्तकमा लेखसूचि विषयवार वर्गीकृत करीने प्रगट करवामां आवी छे. पण लेखसूचिना प्रकाशन साथे अंतिम लक्ष्य सिद्ध थतुं नहोतुं. जयंतभाईर्नु लक्ष्य हतुं आ सामग्रीने ग्रंथस्थ स्वरूपे क्रमश: प्रकाशित करवान. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर जेवी लब्धप्रतिष्ठ संस्था मोहनभाईनां लखाणोना आवा प्रथम ग्रंथप्रकाशन माटे संमत थतां, जयंतभाईए पहेलु काम हाथ उपर लीधं ते मोहनभाईए सामयिकोमां संपादित करेल प्राचीन मध्यकालीन कृतिओना संपादनग्रंथy. ___ त्यारे तो मारा जेवाने एम लागतुं हतुं के मोहनभाई-संपादित तमाम कृतिओने कां तो विषयवार का स्वरूपवार वर्गीकृत करी गोठवणीनुं आयोजन करवा पूरतो तेमज नजरे पडता मुद्रणदोषो दूर करवा पूरतो जयंतभाईनो संपादनश्रम मर्यादित रहेशे. पण जयंतभाई जेनुं नाम ! हाथ उपर लीधेला कामनो तेओ एटली झडपथी पीछो छोडे कदी ? संपादित कृतिओमां मुद्रणदोषो उपरांत ज्यां ज्यां एमने भ्रष्ट पाठ मालूम पड्या, पाठनिर्णयो खोटा जणाया, क्यांक वैकल्पिक अन्य पाठ होवानी संभावना देखाई तेवां स्थानोनी पाठशुद्धि के पाठनिर्णय अर्थे ते-ते कृतिओ अन्यत्र मुद्रित थई होय तो ते जोई जवानो, शक्य होय त्यां एनी हस्तप्रत कढावीने पाठ मेळवी लेवानो श्रम लईने, मोहनभाईनी समग्र संपादित सामग्रीने एमणे संशोधित करी आपी. एथी तो अहीं घणंखरूं प्रत्येक कृतिनी साथे एक मोहनभाईनी अने बीजी जयंतभाईनी एम बब्बे संपादकीय नोंधो जोवा मळशे. मोहनभाईनी संपादकीय नोंध गोळ कौंसमां अने जयंतभाईनी संपादकीय नोंध चोरस कौंसमा अहीं अपाई छे. आ उपरांत, कृतिने छेडे मोहनभाई-संपादित कृति मूळमां ज्यां प्रगट थई होय ते सामयिक/ग्रंथनाम, वर्ष अने पृष्ठ-क्रमांक नोंधवानी चीवट जयंतभाईए जाळवी छे. मोहनभाई खास करीने ‘हेरल्ड' अने ‘जैन युग’मां प्राचीन मध्यकालीन साहित्यमांथी विषय अने स्वरूपनी दृष्टिए केटकेटली वैविध्यपूर्ण सामग्री संपादित करीने प्रकाशित करता हता ते आ ग्रंथमा एक उपलक नजर नाखतां पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy