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चूरासीई पूरवलाख ताई, राज पाली शुभपरिई । संसारथी ऊभगा चारण-समण पासइ व्रत लीइ ॥६६॥ वेधिस्युं सोलइ लखि पूरव सही, संयम सरिसु तप अणसण ग्रही । सामानीक सुर अचुइ ते थया, बावीस सागर सुख भोगवी चव्या ॥ सुख भोगवो ते चव्या धाईसंडि भरति रधिवरू । हरिसेण अधचक्रवति रांणी, समुद्रदत्ताउरि सरह । एक नाम सागरदेव बीजु, नामि सागरदत्त ए । गजकर्ण चंचल राजसिरी ईम, जाणि संजम पत्त ए ॥६७॥ अचि प्रभाविइं त्रीजइ दिन हणइ, तिहांथी सूके थया ते सुरपणइ । सागर सत्तर आउखू तिहां लहइ, अवसरि वांदो बावीसमा जिणनइ कहइ ॥ जिणनइ कहि जनमस्यां किहां अम्हे, तिहां श्रीजिनवर भणइ । जयसेन नृपघरि महिलिपुरवरि, सुतपणइ अतिसुख घणइ । युगबाहुनइ घरि सुदरसनपुरि, पुत्र बीजउ सूंदरू । मयणरेहउयरि आविसइ, इम कहि तसु श्रीजिनवरू ॥६८॥ तिहाथी चवी जयसेनघरिइ भलु, वनमालाउरि सरिवरि हंसलु । नामि पउमरथ कुंवरे थयउ, हवइ राज्यपदवी ते सुतनइ संठवइ ।। संठवी सुतनइ व्रत लीयइ नृप, पउमरथ थयु भूधणी । तसु पुफमाला नामि रांणी, तुझ सूत बीजउ गुणी । विपरित शिक्षित अश्व आंण्यु, अडवीमध्ये भूपती । ते बाल तुझ सूत तेणइ पांम्यु, वखति हुवइ सवि संपतो ॥६९॥
ते बालिक लेई करी ए, पुफमालानइ दोध । जनममुहुछव थाइ घणा ए, कीद्धा द्रविण समृद्ध । कुमरजी दिनि दीनिइ ए, वाधइ छइ तिहां जांणि-ए आंकणी ॥७०॥ ईणिइ अवसरि सुर आवीउ ए, चडी विमान उदार । दसो दसि तिहां हुउ ए, घूघरीआं घमकार ॥ कुम० ।।७१॥ ते सुर त्रिण्हि प्रदखिणा ए, मयणरेहानई देई । चरणकमलई नम्यु ए, पछइ मुनि प्रणमेई ॥ कुम० ॥७२॥ भूइतलि बइठउ तेणि समइ ए, वद्याधर कहइ एम । तुम्हे नवि चूकवु ए, विबुध अबूध हुइ केम ॥कुम० ॥७३॥ १ विधिपूर्वक
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