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________________ उपसंहार २४९ 'परवती प्रन्थकारों पर भासर्वज्ञ का प्रभाव ' नामक नवम तथा अन्तिम विमर्श में यह बतलाया गया है कि उत्तरवती दार्शनिकों ने भासर्वज्ञ के वैदुष्य तथा न्यायदर्शन की स्वतन्त्र समीक्षापद्धति से प्रभावित होकर अपने ग्रन्थों में अपने सिद्धान्तों के समर्थनार्थ या भासर्वज्ञ के सिद्धान्तों के प्रत्याख्यानार्थ तत्प्रतिपादित सामग्री को प्रचुरमात्रा में उद्धृत किया है । उन विद्वानों में न्याय, वैशेषिक तथा बौद्ध दर्शन सभी के विद्वान् हैं। इससे भासर्वज्ञ का प्रभावातिशय स्पष्ट प्रतात होता है । चाहे खण्डनार्थ ही उल्लेख किया हो, तो भी वे उसकी उपेक्षा न कर सके। उपलब्धि इस शोधप्रबन्ध की प्रथम उपलब्धि यह है कि न्यायसार के समासतः सभी विषयों का विवेचनपूर्वक सम्यक् उपस्थापन है । ऐतिहासिक दृष्टि से भासर्वज्ञ के पूर्ववता' भाष्यकार, वातिककार, जयन्त भट्ट के तथा समानतन्त्रीय वैशेषिक विद्वान् प्रशस्तपादादि व बौद्ध दार्शनिकों के तत्त।वषयसम्बन्धी विचार का प्रस्तवन द्वितीय उपलब्धि है। कितने ही स्थलों में भूषणसम्बन्धी समीक्षा का भी उल्लेख तथा स्पष्टीकरण इसकी तृतीय उपलब्धि है। इसके अतिरिक्त कहीं-कहीं भासर्वज्ञमत की आलोचना जैसे, अनध्यवसित हेत्वाभास की पृथकता का निराकरण, उपमानप्रमाणान्तर्भाव की सूत्रारकानभिमतता तथा आनन्दसंवितसहित दुःखात्यन्तनिवृत्तिरूप भासर्वज्ञसम्मत मुक्ति न्यायदर्शन से विपरीत है इसका प्रतिपादन इस शोधप्रबन्ध की चतुर्थ उपलब्धि है। न्यायदर्शन की अभिनव शैली से स्वतन्त्र विवेचना प्रस्तुत करने वाले इस ग्रन्थ पर, जहां तक कि मुझे विदित है, किसी ने भो समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत व्या है। अतः यह शोधप्रबन्ध इस विषय पर भविष्य में समीक्षात्मक अप्ययन करने बालों के लिये किसी न किसी रूप में उपयोगी हो सकेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। इति शम भान्या-३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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