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________________ प्रमेयनिरूपण २१७ स्मरण होने लगेगा, क्योंकि उनमें कार्यकारणभाव है । यदि यह कहा जाय कि लाक्षारस के सेक से आहित संस्कार वाले कपास के बीज से जैसे कपास में रक्तता पैदा हो जाती है, उसी प्रकार पूर्वबुद्धि अपने संस्कारों का आधान अपने कार्य उत्तरबुद्धि में कर देती है, अतः उस संस्कार के बल से उत्तरबुद्धि द्वारा पूर्वबुद्धि से अनुभूत का स्मरण हो सकता है, तो यह कथन भी अनुचित है। क्योंकि कपास की रक्तता वाला दृष्टान्त न तो 'पूर्वबुद्धि से अनुभूत विषय का उत्तरबुद्रि से स्मरण हो सकता है इस बौद्वमन को सिद्ध कर सकता है और न' पूर्वबुद्ध से अनुभूत विषय का उत्तरबुद्धि से स्मरण अनुपपन्न है, क्योंकि अनुभव और स्मरण का सामानाधिकरण्यनियम है,' इस हमारे पक्ष को दूषित कर सकता है। अर्थात् कार्यासरक्तता-दृष्टान्त जहाँ कार्यकारणभाव होता है, वहाँ अन्यानुभूत का अन्य को स्मरण होता है इत्याकारक अन्वयव्याप्ति या जहाँ अन्यानुभूत का अन्य से स्मरण नहीं होता है व कार्यकारणभाव नहीं होता है, इस व्यातरेक-व्याप्ति को सिद्ध. करने में समर्थ होता, तो पूर्वबुद्धि व उत्तरबुद्धि में कार्यकारणभाव होने से पूर्णबुद्ध से अनुभूत का उत्तरबुद्धि को स्मरण हो जाता है इस बौद्धमत का साधक हो सकता था, किन्तु कार्पासदृष्टान्त से यह सिद्ध नहीं होता और यदि अन्य से अनुभूत का अन्य द्वारा स्मरण अनुपपन्न है, क्योंकि अनुभव और स्मरण का सामानाधिकरण्य नियम है, इस अस्मदभिमत में असिद्धि आदि दोषों की उद्भावना में कार्पासरक्तता का दृष्टान्त समर्थ होता, तो हमारा पक्ष दूषित हो जाता । किन्तु यह दृष्टान्त इस कार्य को करने में भी असमर्थ है। __कार्पासरक्तता का दृष्टान्त भी विषम है, क्योंकि कार्पास में लाक्षारसावसेक के द्वारा उसके पत्र-कुसुमादि में रक्तता मानने वालों के मत में कार्पास का निरन्वय विनाश नहीं होता । अंकुर से जहाँ बीजोत्पत्ति होती है, वहाँ भी अंकुर के बाह्यदलों का अर्थात बोजावरण का ही नाश होता है, सूक्ष्म बीजरूप कारण का नहीं क्योंकि सूक्ष्म बीज ही वृक्षरूप में परिणत होता है, अतः किसी भी वस्तु का निरन्वय विनाश नहीं होता है । इसलिये कार्पास के बीज की रक्तता पत्र-पुष्पादि में आ सकती है, किन्तु बौद्ध विज्ञान का निरन्वय विनाश मानते हैं । अतः वहाँ पूर्वबुद्ध के संस्कारों का उत्तरबुद्धि में आधान कथमपि संभव नहीं है और न पूर्वबुद्ध से अनुभत विषय का उत्तरवद्धि से स्मरण होता है। अतः क्षणिक विज्ञान भी आत्मा नही है। बौद्धों का सभी पदार्थो को क्षणिक मानना भी सर्वथा असंगत है, क्योंकि घटादि पदार्थों में ‘स एवायं घटः यो ह्यो मया दृष्टः' इस प्रत्यभिज्ञा प्रत्यक्ष के द्वारा पदार्थो में क्षणिकत्व का अभाव सिद्ध है। प्रदीपज्वाला प्रतिक्षण परिवर्तनशील है, किन्तु वहां भी 'सेयं दीपज्वाला' यह प्रतीति जिस प्रकार सादृश्य के कारण मानी जाती है अर्थात् पूर्वक्षण में विद्यमान दीपज्वाला से उत्तरक्षणवर्तनी भान्या-२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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