SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कथानिरूपण तथा छल... इस व्युत्पत्ति से स्वदृष्टान्त शब्द का स्वपक्ष तथा प्रतिदृष्टान्त शब्द का प्रतिपक्ष अर्थ मानकर स्वपक्ष में प्रतिपक्ष आकाशादि के धर्म नित्यत्व की अभ्यनुज्ञा प्रतिज्ञाहानि है, यह समाधान प्रस्तुत किया है। किन्तु भासर्वज्ञ का कथन है कि सूत्र में दृष्टान्त शब्द करणत्वसाम्य के कारण लक्षणा सेही पक्ष का तथा प्रतिष्टान्त शब्द प्रतिपक्ष धक हो सकता है। अतः उपर्युक्त क्लिष्ट कल्पना की क्या आवश्यकता है? सहचरणादि सूत्र में साधनाधिकरणत्व का लक्षणकारणों में परिगणन न होने पर भी दोष नहीं, क्योंकि सूत्र में सहचरणादि कारण उदाहरणमात्र-प्रदर्शनार्थ हैं न कि इयत्ताबोधक । प्रयोजन के बिना लक्षणा कैसे होगी, यह भी कोई आपत्ति नहीं, क्यों क 'मंचाः कोशन्ति' इत्यादि में बिना प्रयोजन के भी मंचशब्द की मंचस्थ पुरुषों में लक्षणा दृष्ट है । यदि प्रयोजन का आग्रह ही हो, तो प्रकृत में भी प्रतिदृष्टान्त धर्म को न स्वीकार करने पर भी पक्ष में प्रतिपक्ष धर्म स्वीकार करने पर प्रतिज्ञात अर्थ की हानि से प्रतिज्ञाहानि हो जाती है, यह प्रयोजन लक्षणाश्रयण में विद्यमान है। धर्मकोर्ति ने यहां एक शंका प्रस्तुत की है कि वादी स्वयं शब्द को अनित्य स्वीकार कर उसे पुनः नित्य कैसे मान सकता है और यदि स्वीकार कर भी लेता है, तो शब्द में अनित्यत्व धर्म की उपलब्धि से वादी संशयग्रस्त हो सकता है कि शब्द नित्य है अथवा अनित्य । अतः यहां प्रतिज्ञाहानि का प्रश्न उपस्थित नहीं होता ।' भासर्वज्ञ ने इसका परिहार करते हुए कहा है कि प्रतिवादी की उक्ति में दोष का परिज्ञान न होने से सिद्भमाध्यतादोष से अपहत चित्त वाला वादी नित्यता का स्वीकार कर सकता है, क्योंकि भ्रान्ति पुरुष का धर्म है, और उसका कोई निश्चित कारण नहीं । शब्द में अनित्यत्व धर्म के दर्शन से वादी यद्यपि शब्द नित्य है अथवा अनित्य, ऐसे संशय में पड़ जाता है, तथापि विजयाकांक्षी होने से वह अपने संशय को प्रकट नहीं करता । अतः शब्द में प्रतिज्ञात अर्थ अनित्यत्व धर्म का परित्याग करने से वह प्रतिज्ञाहानिरूप निग्रहस्थान का भागी बन जाता है । (२) प्रतिज्ञान्तर प्रतिज्ञात अर्थ का प्रतिषेध हो जाने पर धर्मभेद से दूसरी प्रतिज्ञा स्वीकार करना प्रतिज्ञान्तर है जैसाकि सूत्रकार ने कहा है- 'प्रतिज्ञातार्थप्रतिषेधे धर्मविकल्पात्तदर्थनिर्देशः प्रतिज्ञान्तरम् ।' जैसे, वादी ने शब्द को · अनित्य द्धि करने 1. वयं तु बमः- साधनाधिकरणत्वादिसाधयात पक्षोऽत्र दृष्टान्तशब्डेनोपचरितः । -न्यायभूषण, पृ. ३५८ 2. न्यायसूत्र, २/२/६१ 4. न्यायभूषण, पृ. ३५८, ३५१ 3. वादन्याय, पृ ७१ 5. न्यायसूत्र, ५।२।३ भान्या-२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy