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________________ अनुमान प्रमाण ३. पक्षसपक्षव्यापक विपक्षैकदेवृतिः यथा - 'गौरयं विषाणित्वात्' । विपाणी पिण्ड ही यहां पक्ष है और उसमें सर्वत्र विषाणित्र की सत्ता होने से यह हेतु पक्षव्यापक है । समस्त सपक्ष गोपिण्डों में भी विषाणित्व हेतु की सत्ता है | गोल्स में भी विषाणित्व की योग्यता है. अतः सपक्ष व्यापक है । विपक्ष के एकदेश महिषादि में विषाणित्व की सत्ता है, अश्वादि में नहीं । इसलिये यह विपक्षैकदेशवृत्ति भी है । ४. पक्ष विपक्षव्यापक सपक्षेकदेशवृत्ति : यथा - 'नायं गौविषाणित्वात्' । यहां भी पूर्ववत विषाणी पिण्डमात्र पक्ष है, उसमें सर्वत्र विषाणित्व की सत्ता होने से यह हेतु पक्ष व्यापक है । गोत्वाभाव रूप साध्य के अभाव वाले गोमात्र.. में भी विषाणिव की सत्ता होने से विपक्ष व्यापक भी है तथा गोत्वाभावरूप साध्य वाले महिषादि में हेतु की सत्ता और अश्वादि हेतु की सत्ता न होने से यह हेतु सपक्षकदेशवृत्ति है । ५. ११३ पक्ष त्रयैकदेवृत्ति : यथा - 'नित्या पृथिवी प्रत्यक्षत्वात्' । यहां प्रत्यक्षत्व से अयोगीन्द्रियग्राह्यत्र ही अभिप्रेत है । अतः अयोगीन्द्रियग्राह्यत्व - रूप प्रत्यक्षत्व के पक्षभूत परमाण्वादि पृथिवी में, नित्यत्वरूप साध्य वाले दिगादि सपक्ष में तथा नित्यत्वरूप साध्य के अभाववाले अनित्य द्वयणुकजलादि में न रहने से पक्ष, सपक्ष, विपक्ष तीनों के एकदेश में ही रहता है । ६. पक्षस पक्षेक देशवृत्ति विपक्ष व्यापक : यथा - 'द्रव्याणि दिवकालमनांस्य मूर्तत्वात्' । यहां अमूर्तत्व हेतु दिक्कालमनोरूप पक्ष के एकदेश दिक् व काल में ही रहता है, मन में नहीं तथा द्रव्यत्वरूप साध्यवाले आकाश में ही अमूर्तत्व है, पृथिव्यादि में नहीं । अतः यह पक्षसपक्षैकदेशवृत्ति है और द्रव्यत्वरूप साध्य के अभाव वाले गुणादि में सर्वत्र रहता है । अतः विपक्ष व्यापक है । ७. पक्षविपक्षैकदेशवृत्ति सपक्ष व्यापक : यथा - 'न द्रव्याणि दिक्कालमनांसि, अमूर्तत्वात्' । इस अनुमान में अमूर्तत्व हेतु दिक्कालमनोरूप पक्ष के एकदेश दिक् व काल में रहता है, मन में नहीं तथा द्रव्यत्वाभावरूप साध्य के अभावरूप द्रव्यरूप विपक्ष भान्या - १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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