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________________ न्यायसार ४. अबाधितविषयत्व: प्रमाणाविरूद्ध साध्यविशिष्ट पक्ष में हेतु की वृत्ति अबाधितविषयत्व है। ५. असत्प्रतिपक्षत्व : साध्य और तद्विपरीत के साधन में जो अत्रिरूपत्व अर्थात् पक्षधर्मत्वादि रूपत्रय का अभाव होता है, वह असत्प्रतिपक्षत्व कहलाता है। द्विविध सपक्षवृत्तिता के कारण इसके दो भेद हैं-(१) सपक्षव्यापक और (२) सपक्षक देशवृत्ति । १. सपक्षव्यापक: जैसे, 'अनित्यः शब्दः कार्यत्वात्' । कार्यत्व हेतु समस्त सपक्ष घटादि में विद्यमान है, इसे सपक्षव्यापक अन्वयव्यतिरेकी हेतु कहते हैं। २. सपक्षकदेशवृत्ति: जैसे, 'अनित्यः शब्दः सामान्य सत्त्वे सत्यस्मदादिबाह्येन्द्रियग्राह्य वान्' । 'सामान्यवत्त्वे सत्यरमदादिबाह्येन्द्रियग्राह्यत्व' हेतु सपक्ष के एकदेश अनित्य घटादि में विद्यमान हैं, बुद्ध्यादि में नहीं, क्योंकि बुद्ध्यादि सामान्यवान होने पर भी अम्मदादि -वाह्य इन्द्रिय से ग्राह्य नहीं होते। केवलान्वयी हेतु केवलान्वयी हेतु का लक्षण भासर्वज्ञ ने 'पक्षव्यापकः सपक्षवृत्तिरविद्यमानविपक्षः केवलान्वयी1 यह किया है । जो हेतु पक्ष में व्याप्त हो, सपक्षवृत्ति हो और जिसको विपक्ष न हो, वह केवलान्वयी हेतु कहलाता है। केवलान्वयी हेतु के लक्षण में यद्यपि 'अबाधितविषयत्वासत्प्रतिपक्षत्वे सति' यह विशेषण नहीं दिया गया है, तथापि उसकी अर्थतः प्राप्ति हो जाती है। उक्त हेतु के लक्षण का सरल शब्दों में यह निर्वचन किया जा सकता है कि जहां हेतु केवल अन्वयव्याप्ति से युक्त होता है अर्थात् जहां व्यतिरेकव्याप्ति का अभाव है, उसे केवलान्वयी हेतु कहते हैं । अन्वयव्यतिरेकी हेतु की तरह इसकी भी सपक्षव्यापकत्व तथा सपक्षकदेशवृक्तित्व के भेद से दो विधाएं हैं। १. सपक्षव्यापक : ___ 'विवादास्पदीभूतान्यदृष्टादीनि कस्यचित् प्रत्यक्षाणि प्रमेयत्वात् करतलामलकरत्' अर्थात् विवादास्पद अदृष्टादि किसी के प्रत्यक्ष के विषय हैं, प्रमेय होने के कारण, हस्तामलक की तरह । मीमांसक पुण्य, पाप, स्वर्ग, ईश्वरादि अदृष्ट तत्त्वों का प्रत्यक्ष 1. न्यायसार, पृ. ६ 2. न्यायसार, पृ. ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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