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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org कर्मा विश्वनाथ नागि। विद्या का जात्या नोगा। घादियह लो कामिविध शरीर कई बान्तु यतः श्रील ललकारण कल्पनाला परकार तालमानानति ॥दिवाना युगामा सहम याघातनिवर्ततियानाथ ने इाजिक वसगतायारितियह लेना सतायो साथमाह मई विद्यापति स्यादथापितामितिरिति यियविका विद्यावावित्यादिषु द्याव्यात निवगम क द्विषालिता॥ याया बाप काय काय स्वकाम येस्पानियादि दिश काला त्यो समय नदिकालिदा एक नालायाः समः काल नाविक मादमिर नमासाद्यति समर्थय म यदवि विशय कुहमिि निवास विश्व तथा रूपवासवानि शशश्वानयनान्या वासनापार हि परम पिकावर बसवमतिमनति व नादिपदाव यावहितथितिकारणार पालिया अवनतियतःक्ष रायः कामवमाः । कर्मविकार यासः समशिषः देववहति नवरादिरसा सावत्याद्यततिप्रसंग त ति किंवकर सलमा प्रेममा दवाव से वहस्य मिलाप कारण बेनका वारसा मम मेहतायादिना ॥ परत्वममाहित्यि काकिते याऊन माध्यामव्यय गत्यतीनामतिकरण 1948 सहितका विनानिहाय गावा मियादिन तक मिलन यशोवर्मावित्यो मायाः सिद्यतित घाद्यायानं गमकत्वं वा ये नया पालन दिवस येणादर्शनात मनवा विद्याशिवायामिति व्यायामन्या गावा विजान या सामानाधिनत्रयायायात सामावास्या का विश्वतियः कृतकत्वादि कृत कुलमिति यस्मिदशकाल वा मिस मोना शामिमियायाःया सत्यमितस्य नावासियाह (गनिक व य वा तिलका विभावर्विषादिस पूर्वका शिवाक्ष्यः सायेला घटादिवदिति। वितथ करिति विश्व विश्वतः विश्वतिम या मालमत्यस्य विश्व विवावियहीतव्येस द्यावा गुप्यादीत सवम विसेयुन निकाला मतिः सयानार्थः यतविषयक्ति उष्पवयातिरिति दर्शयतिश्मशान व दिनादिवमास्यः छेद सिपाि पाणिपादादिना ही तथा सागगगन का साथयहणखभावकथव Ms. जेo folios 69A, 70A, 71A ( see printed pp. 81-83 )
SR No.002637
Book TitleNyayamanjari Granthibhanga
Original Sutra AuthorChakradhar
AuthorNagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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