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________________ विषयसूची १. प्राकृत की लौकिक कथाएँ (१) कथाओं का महत्त्व ... ... मनोरंजन-शकुन-शकुनी संवाद-पंख तोड़ने पर कहानी सुनाने वाला शुक-कुतूहल एवं जिज्ञासा । (२) जैन कथाकारों का उद्देश्य ... ... ... ७-१२ जनपदविहार-जनभाषा-लौकिक कथा साहित्य-धर्मकथानुयोग-कथाओं के प्रकार-- विकथाओं का त्याग । (३) शृङ्गारप्रधान कामसंबंधी कथाएँ १२-३० अगड़दत्त का कामोपाख्यान-धर्मकथाओं में शृङ्गार-प्रेमक्रीडाएँ-गांधर्व विवाहकामक्रीडा-काम पुरुषार्थ की मुख्यता-प्रेमपत्र व्यवहार-साधु-साध्वी का प्रेमपूर्ण संवाद-सिंहकुमार और कुसुमावली की प्रेमकथा-कुवलयचन्द्र और कुवलय. माला की प्रणयकथा-लीलावती और उसकी सखियों की प्रेमकथा-शृङ्गाररस प्रधान अनुपलब्ध आख्यायिकाएं । (४) अर्थोपार्जन की कथाएँ .... अर्थकथा की प्रधानता-अर्थोपार्जन के लिए चारुदत्त की साहसिक यात्राइभ्यपुत्रों की प्रतिज्ञा-लोभदेव को रत्नद्वीप यात्रा-व्यापारियों की भाषा और लेन देन-पोतवणिकों के अन्य आख्यान-व्यापारियों की पत्नी की शीलरक्षा-शीलवती महिलाएँ -यात्रागीत -मार्ग की थकान दूर करने वाली कथाएँ-संस्कृतियों का आदान-प्रदान । २. प्राकृत की धर्म-कथाएँ ५१-११४ (१) धर्म-कथाएँ धर्मप्राप्ति की मुख्यता-धर्मकथा के मेद-श्रोताओं के प्रकार-धार्मिक कथा साहित्य-कथाकोषों की रचना । (२) धूर्त और पाखंडियों की कथाएँ ५५-६३ नागरिकों द्वारा ठगाया गया ग्रामीण-धूर्ती से सावधान रहने की आवश्यकताधूर्तराज मूलदेव की कथा-मूलदेव की अन्य कथाएँ-धूर्त जुलाहा-चार ढोंगी प्रवंचक मित्रों की कहानी-कपटी मित्र-दो बनिये । (३) मूखों और विटों की कथाएँ ६३-७० मूर्ख लड़का-मूर्ख शिष्य-मूर्ख पंडित की कहानी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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