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शान्त करने अथवा धार्मिक आवश्यकता की प्रवृत्ति देखी जाती है, जबकि काल्प निक कथाओं में उपदेशात्मक प्रवृत्ति की प्रधानता रहती है। यही कारण है कि लौकिक कथा-कहानियों का अस्तित्त्व लोगों में तभी से चला आता है जबकि साहित्य में उनका प्रवेश भी नहीं हुआ था । सर्वप्रथम प्राकृत साहित्य में उन्हें स्थान प्राप्त हुआ जबकि काल्पनिक कथाओं का उद्भव साहित्य में हुआ और इन्हें संस्कृत साहित्य में स्थान मिला ।'
_प्राकृत जैन कथा-साहित्य के अध्येता प्रोफेसर हर्मन जैकोबी (१८८४ में सेक्रेड बुक्स आफ द ईष्ट सीरीज़ में जैन सूत्रों का प्रथम भाग प्रकाशित), डाक्टर मौरिस विंटरनित्स 'भारतीय साहित्य का इतिहास' के क्रमशः १९०४, १९०८, १९१३ और १९२० में चार भाग प्रकाशित) तथा डा० जे० हर्टल (१९२२ में 'आन द लिटरेचर आफ श्वेतांबर जैन्स आफ गुजरात' नामक लघु किन्तु महत्त्व पूर्ण पुस्तिका प्रकाशित) आदि अनेक विदेशी विद्वानों ने प्राकृत कथा-साहित्य के क्षेत्र में अनुपम योगदान दिया है । क्या इनसे प्रेरित होकर हमारे विद्वान् प्राकृत कथा-सागर के बहुमूल्य मुक्ताओं को ढूंढ़ निकालने में प्रयत्नशील न होंगे ?
। १० विटरनित्स; हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर; जिल्द ३; भाग १; पृ० ३०१, ३३१,३०३
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