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पंख तोड़ने पर कहानी सुनानेवाला शुक
एक बार किसी भील ने जंगल में से एक शुक को पकड़ा । उसका एक पैर तोड़ और उसकी एक आंख फोड़ उसने शुक को बाजार में छोड़ दिया । शुक आख्यान और कथा कहानियाँ सुनाने में कुशल था । संयोगवश वह श्रावकपुत्र जिनदास की स्त्री के हाथ पड़ गया । जिनदास की स्त्री ने उसे मार डालने को धमकी दी । उसने शुक के पंख उखाड़ना शुरू किया ।
शुक ने सोचा कि इस तरह मरने से क्या लाभ । अतएव ज्योंही जिनदास की स्त्री उसका पंख उखाड़ती, वह उसे कहानी सुनाता । उसने उसे नाइन, वणिकूकन्या, कोलिन, कुलपुत्र की कन्या आदि की ५०० कहानियाँ सुनाईं । रात्रि व्यतीत हो जाने पर जब शुक्र के एक भी पंख बाकी न बचा तो जिनदास की स्त्री ने उसे घूरे पर फेंक दिया । वहाँ से उसे बाज उठा ले गया और फिर वह दासीपुत्र के हाथ में आ गया ।'
कुतूहल एवं जिज्ञासा
कहानियों में कुतूहल एवं जिज्ञासा पैदा करने की क्षमता का होना आव श्यक है । यदि कहानी सुनने से कुतूहल और जिज्ञासा का भाव जागृत न हो तो वह कहानी नीरस हो जाने के कारण मनोभावों को उलित करने में अक्षम रहती है ।
किसी राजा को कहानी सुनने का शौक था । उसने दूर-दूर तक डोंडी पिटवा दी कि जो कोई उसे कभी समाप्त न होने वाली कहानी सुनायेगा, उसे वह अपना आधा राज्य दे देगा । डोंडी सुनकर दूर-दूर के लोग आये । किसी की कहानी एक दिन चली, किसी की दो दिन, किसी की तीन दिन । एक कहानी सुनानेवाला तीस दिन तक कहानी कहता रहा ।
राजा की आज्ञा थी कि जिस किसी की कहानी समाप्त हो जायगी, उसे मृत्युदंड भोगना पड़ेगा । इस प्रकार कितने ही लोगों को मृत्युदण्ड दिये जाने के बाद एक कथक ने राज दरबार में अपना नाम भेजा । उसने कहानी शुरू कीकिसी गांव में कोई किसान रहता था । भाग्य से अच्छी वर्षा हुई और उसकी खेती खूब फूली - फली । फसल पक जाने पर उसने उसे काटा और एक बहुत बड़े खलिहान में भर दिया । खलिहान में अनाज भरकर वह चैन से रहने लगा ।
१. आवश्यकचूर्णि, पृ० ५२२-२६
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