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परीक्षा के लिए स्त्री को यक्षमंदिर में भेजा गया।
स्त्री ने मंदिर के पिशाच (जो पिशाच के रूप में स्त्री का प्रेमी था) को सम्बोधित करके कहा
हे पिशाच ! जिस पुरुष के साथ मेरा विवाह हुआ है, उसे छोड़कर यदि मैंने अन्य किसी से प्रेम किया हो तो तुम साक्षी हो ।
यक्षमंदिर का नियम था कि यदि कोई अपराधी होता तो वह वहीं रह जाता और निर्दोषी बाहर निकल जाता ।'
स्त्री का उक्त सम्बोधन सुनकर पिशाच सोच में पड़ गया कि इसने तो मुझे भी ठग लिया।
पिशाच क्षणभर के लिए सोच में पड़ा रहा और इस बीच स्त्री मंदिर से झट से बाहर निकल आई !
६ बौद्धों की जातक कथाएँ बौद्धों की जातक-कथाएँ भी कथा-कहानियों का समृद्ध कोष है । श्रीलंका, बर्मा आदि प्रदेशों में ये कथाएँ इतनी लोकप्रिय हैं कि लोग रात-रातभर जागरण कर इन्हें बड़ी श्रद्धापूर्वक सुनते हैं । जातक-कथाओं में बुद्ध के पूर्वभवों की कथाएँ हैं जिनके अनेक दृश्य सांची, भरहुत आदि के स्तूपों की भित्तियों पर अंकित हैं । इनका समय ई०पू० दूसरी शताब्दी माना जाता है । जातक-कथाएँ ई०पू० पाँचवीं शताब्दी के पूर्व से लेकर ईसवी सन् की प्रथम या द्वितीय शताब्दी में रची गयी हैं। कतिपय विद्वानों की मान्यता है कि जातक की अनेक कथाएँ महाभारत और रामायण में विकसित रूप में पायी जाती हैं।
शुद्धतापरीक्षा (चैस्टिटी टैस्ट) मोटिफ' के लिये देखिये स्टैण्डर्ड डिक्शनरी ऑफ फोक लोर माइथोलोजी एण्ड लीजेण्ड, जिल्द १ मारिया लीच, न्यूयार्क १९४९. चैस्टिर टैस्ट' और 'ऐक्ट ऑफ टूथ' नामक लेख; पेन्जर, ओशन ऑफ स्टोरी, 'चैस्टिट इण्डेक्स' मोटिफ, भाग १, पृ. १६५-६८ रूथ नॉरटन (Ruth Nortan), द लाइ' इण्डेक्स ए हिन्दू, फिक्शन मोटिफ, स्टडीज़ इन आनर आफ मौरिस ब्लूम फील येल यूनिवर्सिटी प्रेस, १९२० । दशवैकालिक चूर्णी, पृ० ८९-९१ । परिशिष्ट पर्व (२.८.४४६-६४०) भी देखिये तुलना कीजिए शुकसप्तति की १५वीं कहानी के साथ ।
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