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वे हैं-विषमाल कार ( १.५०-विषमाल कार व अर्थान्तरन्यास); विभावना ( २. १०-रूपक व विमावना ); अनुमान (३. ८, ३. १५६), आरोप ( ३. १६), भ्रान्तिमान् (३.१६१; ४. ३) दृष्टांत (५. ३८, ४१, ७९, ८१ व ८८), कारणमाला (४. ३३), व सन्दह ( ५. १६ व ६. २१)।
कवि ने सुन्दर अर्थान्तरन्यासों का प्रयोग किया है । देखिए - (१) कामरागो हिं दुस्त्यजः ।
(१,१९) (२) उपासितोऽपि दुर्वृ त्तो विकृति भजते पराम् । (१,२६) (३) उपर्युपरि धावन्ति विपदः शुभसंक्षये । (४) लघूपदेशाद्वैराग्यं जायेत लघुकर्मणाम् ।
(१,५६) (५) लघूपदेशतोऽपि स्याद् निर्वेदो लघुकर्मणाम् । (२,३५) (६) निजधर्मक्रमाचारो दुरुल्लध्यो महात्मनाम् ॥ (२,६८) (७) ....... 'साधुजनानुषङ्गता कृतार्थयत्यन्यजनं हि केवलम् ॥
(५,४२) इसके अतिरिक्त कवि के प्रमुख अल कार - उपमा, रूपक, व्यतिरेक, स्वभावौक्ति, उपेक्षा, यमक ब अनुप्रास को उदाहरणस्वरूप देखिए -
उपमा अलंकार
(१) विभुर्बभासे सुतरामवाप्य तरुण वयः ।
शशीव कमनीयोऽपि शारदों प्राप्य पूर्णिमाम् ॥ ४, ४४ ॥ यहां कवि ने भगवान् पार्श्व की तरुणावस्था की शोभा को शरदकालीन पूर्णिमा को प्राप्त चन्द्रमा की उपमा से सजाया है । कवि कहता है-सुन्दर होने पर भी पार्श्वप्रभु तरुणाना को प्राप्त करने के कारण उसी प्रकार अत्यन्त शोभित थे जिस प्रकार सम्दर चन्द्रमा शरदकालीन पूर्णिमा को प्राप्त कर अधिक शोभा से शोभायमान होता है ।
(२) स्तनाविवास्याः परिणाहिमण्डलौ सुवर्णकुम्भौ रतियौवनश्रियौ ।
सुचुचुकाच्छादनपद्ममुद्रितौ विरेजतुर्निस्तलपीवराविमौ ॥५, .१८ ॥ (३) विसारितारयतिहारहारिणौ स्तनौ नु तस्याः सुषमामवापतुः ।
सुरापगातीरयुगाश्रितस्य तौ रथाङ्गयुग्मस्य तु कुङ्कुमार्चितौ ॥५, १९॥ कवि पदमसुन्दर ने अत्यन्त शृगारिक वर्णन करते हुए प्रभावती के स्तनों के सौन्दर्य वर्णन के समय, प्रथम श्लोक में उसके स्तनों की उपमा बन्द कमल से दी है तथा दूसरे
में स्तनों को देवनदी गंगा के तट पर स्थित चकवा-चकवी के जोडे से उपमित किया है। ये उपमाएँ बहुत सुन्दर, उचित व चित्ताकर्षक है।
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