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________________ ४९ इस कथन में कवि ने बड़ा ही स्वाभाविक चित्रण किया है । वस्तुतः ऐसा ही होता है। किसी वस्तु को देखने का किसी को कौतुहल होता है तो कोई अन्यों की नकल कर, बिना हृदयगत प्रेरणा के ही घटनास्थल पर जा पहुँचता है । जो भी कुछ हो, कवि कहता है, पाश्व' को देखने तो सभी नागरिक पहुँचे हुए थे। अब स्त्रियों की आतुरता देखिए- . कोई महिला अपने स्तनपान करते बच्चे को भी छोड़ कर दौड़ी । कोई एक ही पैर में महावर लगाये हुए दौड़ने लगी और कोई गलते हुए अलते वाली स्त्री दौड़ रही थी । अन्य कोई महिला स्नान सामग्री को पटक कर पाव को देखने जा पहुँची । स्तन धयन्तं काऽपि स्त्री त्यक्त्वाऽधावत् स्तनंधयम् । प्रसाधितै कपादाऽगात् काचिद् गलदलक्तका १६, १४|| ... ... .. .. .. ... काऽपि मज्जनसामग्रीमवमत्य गतान्तिकम् ।।६, १५।। इसी प्रकार से गलते हुए अलते वाली स्त्री का वर्णन कुमारसम्भव में भी हुआ है जहाँ वह अपने गलते हुए अलते के कारण पैरों की छाप बनाती दौड़ती है प्रसाधिकाऽऽलम्बितमग्रपादमाक्षिप्य काचिद्र्वरागमेव । उत्सृष्टलीलागतिरागवाक्षादलक्तकाङ्की पदवी ततान ।।७, ५८।। और ठीक इसी प्रकार का वर्णन माघ ने भी किया है जहाँ माघ की सुन्दरी को यावक से रंगे एक पैर को हटा कर उसे कृष्ण को देखने के लिए दौड़ते हुए, अपने पदचिह्नों को जमीन पर छोड़ते हुए चित्रित किया गया है (देखिए-माघ का शिशुपालवध-१३, ३३)। कथा में संघर्ष तत्त्व (आन्तर एवं बाह्य) पार्श्व के पूर्व भवों की कहानी दो भाइयों के मध्य उत्पन्न हुए वैरभाव की कहानी है । मरुभति व कमठ दो सगे भाई थे। बड़ा भाई कमठ अत्यन्त विलासी प्रकति का था। उसे अपने छोटे भाई मरुभूति की पत्नी से प्रेम था। इस बात का ज्ञान जब मरुभूति को होता है तब वह राजा अरविन्द से कमठ के दुराचरण का वर्णन करता है। परिणामस्वरूप राजा कमठ को तिरस्कृत कर देश से निष्कासित कर देता है । कमठ तापस बन बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है। परन्तु उसके हृदय में अपने छोटे भाई के प्रति वैर, प्रतिशोध की भावना बैठ जाती है वह फिर जन्म-जन्मान्तरों तक निकलती नहीं है। करुणाचित्त मरुभूति अपने भाई को घोर अपमानित अवस्था में देश से सदा के लिए निकाला जाता हआ देखता है तो उसे राजा से शिकायत करने का अफसोस होता है. अतः वह अपने बड़े भाई से क्षमा मांगने उसके पास जाता है। क्रोध में पागल, बदले की भावना में झुलसा हुआ कमठ मरुभूति पर शिला फेंक कर प्रहार करता है और उसके प्राण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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