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________________ उसके प्रति शत्रभाव की वृद्धि करना ही रहा है, कभी सर्प या विषधर के रूप में तो कभी वनेचर या सिंह के रूप में वह उसे मार ही डालता है । शेष तीन भवों में उसे मानव जन्म मिलता है और इसी से तीन जन्मों में उसका चरित विकास पा सका है। प्रथत भव में कमठ के रूप में उसके चरित्र को हम देख चुके हैं। वहाँ वह अत्यन्त कामी, अविवेकी, क्रोधी व अज्ञानी के रूप में दिखलाई देता है । स्वयं अपराध कर शर्मिन्दा होने के स्थान पर अपने छोटे भाई के अनुराग व पश्चात्ताप की अवगणना करते हुए उस पर अत्यन्त निर्ममता से शिला का प्रहार करता है और उसके प्राणों को लेकर भी अपने अज्ञान व क्रोध को दूर नहीं कर पाता । अपने प्रथम भव के पापाचरण के फलस्वरूप, सात जन्मों तक भटकता हआ और अपने पापों को बढ़ाता हआ वह नवें जन्म में अत्यन्त दरिद्र परिवार में जन्म लेता है । उसके जन्म लेते ही उसके माता-पिता व अन्य कटुम्बीजन मृत्यु को प्राप्त करते हैं। अत्यन्त कार के साथ अपनी जीविका का निर्वाह करता, सबके द्वारा अपमानित होता हआ, मुझ दुःखी को धिक्कार है, एसी भावना से अधिक दुःखी होता हुआ वह बड़ा होता है । उसके पश्चात् कन्दमूलादि के खाने से अपना निर्वाहे करता हुआ, काशी मण्डल के वन में वह रहना प्रारम्भ करता है और पञ्चाग्नि तप करता हआ तापस बन जाता है । अपने प्रथम भव में एवं नवे भव में उसकी पहचान कमठ नाम से ही की जाती है। इन दोनों ही भवों में वह आडम्बर अज्ञान से भरपूर एवं कर्मकाण्ड वाली तपस्या करता है जिसका ना कोई अर्थ है और ना ही उससे उसे किसी फल की ही प्राप्ति होती है । __उसके नवे भव में भगवान् पार्श्व जब उसे अज्ञान से भरपूर पञ्चाग्नि तपस्या से रोकते हैं व ज्ञान देते हैं तब वह अधिक कद होकर उन्हें ही बुरा भला कहने लगता है। उसकी तपस्या श्रीपार्श्व के शब्दों में विधवा स्त्री के द्वारा आभूषण धारण करने के समान अथवा उसकी धर्मविधि पत्थर पर बैठ कर समुद्र पार करने के समान है, अथवा जल के मन्थन से घी पाने की इच्छा रखने के समान है, और भुस्से के कूटने से चावल पाने की इच्छा रखने के समान ही निरर्थक है । उसके पश्चात अपने अन्तिम भव में वह मेघमाली नामक दुष्ट राक्षस बनता है। और एक दिन तापताश्रम में श्रीपाल को प्रतिमास्थित बैठे देख उन्हें तरह तरह की यातनाएँ पहचाने लगता है। उसने पार्श्व की समाधि को भंग करने के लिए पहले तो वेताल, बिच्छ, हाथी, सिंह आदि बना कर उन पर छोड़ । उससे भी जब उसकी समाधि भंग होती ना देखी तब पार्श्व को डुबो देने के इरादे से उसने आकाश में कृत्रिम मेष बना, सात दिन तक घनघोर वर्षा की । बरसात के पानी से पृथ्वी समुद्र की तरह बन गई और पानी पार्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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