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११८
श्रीपाश्चनाथचरितमहाकाव्य प्रदेशप्रचयाऽभावादस्य नैवास्तिकायता । समयावलिकाद्यात्मा व्यवहारात्मकः स च ॥११६॥ अन्ये पञ्चास्तिकायाः स्युर्धर्माधर्मो नभस्तथा । काल एते स्वमूर्ताः स्युमूर्तद्रव्यं तु पुद्गलः ।।११७॥ वर्णगन्धरसस्पर्शलक्षणाः पुद्गला मता: । अमूर्ताः स्कन्धदेशप्रदेशभेदात् त्रिधा मताः ॥११८॥ मूर्तद्रव्यं चतुर्धा स्यात् स्कन्धदेशप्रदेशतः । परमाणुस्त्वप्रदेशः स्कन्धादेर्मूलकारणम् ॥११९।। द्वथणुकादिमहास्कन्धरूपः स्कन्धः पृथग्विधः । धर्मछायातमोज्योत्स्नामेघवर्णादिभेदभाक् ॥१२०।। कार्यानुमेयास्त्वणवो द्विस्पर्शाः परिमण्डलाः । वर्णो गन्धो रसश्चैकस्तेषु नित्या भवन्ति ते ॥१२१॥ अनित्याः पर्ययैरेव सूक्ष्मसूक्ष्मो भवेदव्यणुः । सूक्ष्मास्तु कार्मणस्कन्धाः सूक्ष्मस्थूलाः पुनर्मताः ॥१२२॥ शब्दगन्धरसस्पर्शाः स्थूलसूक्ष्माः पुनर्मताः ।
छायाज्योत्स्नाऽऽतपाद्याश्च स्थूलद्रव्यं जलादि च ॥१२३।। (११६) कालद्रव्य में प्रदेशप्रचय का अभाव है । इसीलिए काल अस्तिकाय नहीं है । व्यवहारात्मककाल समय, आवलिका आदि रूप है। (११७) (काल के सिवाय) अन्य पाँच द्रव्य पञ्चास्तिकाय कहे जाते हैं । धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये अमूर्त द्रव्य हैं । पुद्गल मूर्तद्रव्य है । (११८-११९)पुद्गल के लक्षण हैं-वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श । अमूर्त द्रव्यों के तीन भेद होते हैं-स्कन्ध, देश व प्रदेश । मूर्त द्रव्य के चार भेद हैं- स्कन्ध, देश, प्रदेश और अप्रदेश (परमाणु) परमाणु, स्कन्ध आदि का मूलकारण है । (१२०) द्वन्यणुक से लेकर महास्कन्ध तक अनेकों प्रकार के स्कन्ध होते हैं- जैसे घर्भ, छाया, तमस् , ज्योत्स्ना , मेघ, वर्ण आदि । (१२१-१२२अब) अणुएँ अपने कार्य से अनुमेय है । परमाणु में दो स्पर्श, परिमण्डल, एक वर्ण, एक गन्ध और एक रस सदा होते हैं । पर्यायों के द्वारा परमाणु अनित्य होते हैं। (१२२कड-१२४अब) परमाणु सूक्ष्म-सक्ष्म होता हैं । कार्मण स्कन्ध सूक्ष्म होते हैं । शब्द, गन्ध, रस और स्पर्श सूक्ष्मस्थूल होते हैं । छाया, ज्योत्स्ना, आतप आदि स्थूलसूक्ष्म होते हैं । जल आदि स्थूल दुव्य होते हैं । पृथवी आदि स्थूल-स्थूल होते हैं। ये सब स्कन्ध के भेद हैं।
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