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________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य सङ्क्रान्तमस्मिन् सकलं श्रुतं स्यात् प्रश्रयः छुतात् । तत एव जगन्नी तनैपुण्यं ववृतेतराम् ॥३३॥ खपञ्चस : वह यष्टवर्ष मानेऽन्तरे गते । श्रीनेमेः पार्श्वना योऽयं तदन्तरुद पद्यत ।३४॥ शतवर्ष प्रमाणायुन वहस्ततनृस्कूितिः । कदाचिद्विदधे गोष्ठी श्रीपाव: सुरदारकैः ॥३५॥ क व्यव्याकरणस्फ रम लङ्कारक्तियुक्तिभिः । छन्दोगणस्फुरज्जातिप्रातारायः कदाचन ॥३६॥ कदाचिद् वावदूकैः स वादगोष्ठी समातनोत् । गीतादित्रनृत्यादिगोष्ठीमप्येकदाऽकरोत् ॥३७॥ दाण्डी मौष्टी पुनः क्रीडां कुर्वाणानपगन् सुरान् । । सान्त्वयन्नपरानेष कृतधावनवल्गन त् ।३८॥ कदाचित् कलमुद्गीतं शृण्वानो देवगायनैः ।। स्वीयं यशः स्फुरत्ताम्हारकुन्देन्दुमुन्दम् ॥३९॥ दीर्घिकासु जलक्रडां चक्रे स सुनारकैः । कदाचन वनक्रीडां कृतकैः कलापाददैः ॥४०। (३.३) उस पावकुमार में सकल श्रुत प्रविष्ट था और उसमें श्रुतपे किरय और बिनय से लौकिकन्यास का कौशल प्रगट हुआ था। (३४) श्रीनेमिनाथ भगवान् से तीरासीहजार सात सौ पचास (८३७५०) वर्षों का अन्तर व्यतीत होने पर ये पार्श्वनाथ उद्भूत हुए थे। (३५) सौ वर्ष की आयु वाले और नौ ह थ ऊँचे यह श्रीपार्श्व कभी देवत्रालकों के साथ गोष्ठी करने लगे । (३६-३७) काव्य और व्याकरण से प्रचुर सालंकार उक्तियों वाली युक्तियों से तथा छन्दोगण से प्रचुर जाति, प्रस्तार आदि से याद करने वाले देवबालों के साथे वे वादगोष्ठि करते थे, तथा कभी गीत, वाद्य, नृत्य आदि को गाष्ठियाँ भी करते थे । (३८) दाण्डो मौष्टि आदि क्रीड़ा करते हुए अन्य देवों को यह पार्श्व कुमार अपने दौड़ कूद अदि कार्य से सान्त्वना देते थे । (३९) किसी सनय देवों के द्वारा सुमधुर गाया हुआ, अत्यन्त उज्ज्वल हार, कुन्द, पुध चन्द्र के समान सुन्दर अपना यशोगान भी (पाच-- कुमार) सुनने लगे । (४०) देवबालकों के साथ कभी कभी वे बावड़ियों में जलक्रीडा करते थे तथा कदाचित् कृत्रिम कल्पवृक्षों के द्वारा वनक्रीड़ा का भी अनन्द लेते थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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