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________________ पद्मसुन्दरसूरिविरचित से चोपपादशय्यायां समुत्पेदे महर्द्धिकः । युवा सुप्तोत्थित इवाऽन्तर्मुहूर्तात् सुरोत्तम : ॥४९।। चिताभ्रे गगने विद्युद्विलास इव दिद्युते । तनुरस्याऽमरी दिव्यनानाभरणभारिणी ॥५०॥ अरजोऽम्बरसम्बीतः केयूराङ्गदकुण्डलैः । भ्राजमानवपुः स्रग्वी सालसेक्षणवीक्षणः ॥५१॥ तद्रूपं तच्च लावण्यमस्य दिव्यमयोनिजम् । विरेजे वर्णनातीतं निष्टप्तकनकोज्ज्वलम् ॥५२॥ पुष्पवृष्टिं तदैवाशु मुमुचुः कल्पशाखिनः । जजम्भे दुन्दुभेमन्द्रः प्रतिध्वानो मरुत्पथे ॥५३॥ स किञ्चित् सालसं वीक्ष्य दिक्षु व्यापारयद् दृशम् । तदैव प्रणतो देवैर्दिव्यकोटीरमण्डितैः ॥५४॥ किमद्भुतमिदं कस्मादहमागां क्व चाभवम् । को वाऽयमाऽऽश्रमः के वा सुरा मां प्रणमन्त्यमी ॥५५।। एवं विमृशतस्तस्याऽवधिः प्रादुरभूत् क्षणात् ।। तेनाऽज्ञासीदिदं सर्वं तपःकल्पतरोः फलम् ॥५६॥ (४९) वह मुनि (=मरने के पश्चात् ) उपपादशय्या में उत्पन्न हुआ । वह क्षणभर में ही सोकर उठे हुए युवक के समान महर्द्धिक देवता बन गया । (५०) आकाशमण्डल में बिजली के विलास की तरह वह चमकने लगा और देवस्वरूप उसका शरीर अनेक प्रकार के आभूषणों से सुन्दर प्रतीत होने लगा । ५१) वह देव स्वच्छ शोभन वस्त्रों से युक्त भुजबन्द व कुण्डलों से शोभित शरीर. वाला, मालाधारी व अलसनेत्रों से अवलोकन करने वाला था। (५२) उसका वह दिव्यरूप और स्वाभाविक लावण्य वर्णनातीत तथा तपे हुए स्वर्ण के समान उज्ज्वल चमक रहा था। (५३) (=जब वह उपपादशय्या में उत्पन्न हुआ) तब यकायक कल्पवृक्षों ने पुष्पवृष्टि की तथा आकाशमार्ग में नगाड़े का मन्द प्रतिशब्द होने लगा। (५४) वह देव अलसनेत्रों से देखकर सभी दिशाओं में चारों ओर दृष्टि फैलाने लगा। तभी दिव्य मुकुटों से सम्पन्न देवताओं ने उन्हें झुककर नमस्कार किया। (५५) यह देखकर देव ने सोचा यह क्या आश्चर्य है ? मैं कहाँ से आया और कहाँ उत्पन्न हुआ? यह कौन सा आश्रमस्थल है तथा ये कौन से देवता हैं जो मुझे प्रणाम कर रहे हैं ? (५६) ऐसा विचार करते हुए देव को क्षण। भर में अवधि ज्ञान प्रकट हुआ और उन्होंने यह सब तपस्यारूप कल्पवृक्ष का फल समझा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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