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________________ अपनी पुस्तक ' तीथ कर पार्श्वनाथ भक्ति गंगा' की भूमिका में डॉ. प्रेमसागर जैन ने लिखा है-पाव की ऐतिहासिकता का एक पुरातात्विक प्रमाण है मथुरा का कंकाला टोला । विख्यात कनिधम साहब ने सन् १८७१ में इस टीले के पश्चिमी किनारे को तुड़वाया था। अन्दर से कई जेन प्रतिमाएँ प्राप्त हई। उनमें से कल पर लेख खुदे हुए थे । वहाँ ईटो की एक दीवाल भी प्राप्त हुई थी। शिलालेखों पर से कनिंघम साहब को ज्ञात हुआ कि ईसा की पहली दूसरी शती में कंकाली टीले की भूमि पर एक विशाल जैन स्तूप था । तत्पश्चात् फूयूरर को भी वहाँ पर ४७ फुट व्यास का एक जैन स्तूप तथा जैन मन्दिरों के कुछ अवशेष प्राप्त हुये थे । फयूरर ने एक प्रतिमा पर उत्कीण लेख पढ़ा था- थूपे देव निर्मित ।' इसका अर्थ है-मूर्ति की स्थापना देव निर्मित स्तूप में की गई । यह मूर्ति कुशान संवत् ७९ ( ई. सं०१५७) की है । श्रीजि-न प्रभसरि ने उपयुक्त स्तूप का विविधतीथ कल्प में 'देवनिम्मिअथूप' और 'चतरणीति महातीथ' नामक संग्रहकल्प में 'महालक्ष्मी निर्मितः श्री सुपाश्व स्तूपः ' लिखा है । अतएव सिद्ध है कि श्रीपाश्व" भगवान एक ऐतिहासिक पुरुष थे । वे निग्रन्थ सम्प्रदाय के थे किन्त अन्य सभी श्रमण सम्प्रदाया ने भी उनको इतने ही सम्मान से स्वीकार किया है । अतः उनकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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