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________________ अचानक आकाश में बादल उत्पन्न हुए और सात दिन तक लगातार मूसलाधार बरसात हुई । उस समय, उस वृक्ष में रहने वाले मुचुलिन्द नामक नागराज ने भगवान बुद्ध की घनघोर बरसात से रक्षा की। उसने भगवान के शरीर से सात बार लिपट कर उनके शरीर को पूर्णतया ढक लिया और उनके मस्तक पर मोटी फणा फैला कर स्थित रहा। इस प्रकार मुचुलिन्द नागराज ने बुद्ध भगवान का ठंडी, गर्मी, पवन, जन्तु व मच्छर आदि से बचाव किया। तथा सात दिन पश्चात बरसात के बन्द हो जाने पर उसने अपने शरीर को भगवान के शरीर पर से उतार, माणवकसदृश (छोटे बच्चे के समान) अपनी आकृति बना भगवान की वन्दना की। समानता: - भगवान बुद्ध एवं भगवान पार्श्व- इन दोनों की कथा में बड़ी ही समानता दिखलाई देती है। ध्यानावस्था की स्थिति में, मूसलाधार वृष्टि जो अवरोधक के रूप में सामने आती है उससे दोनों ही भगवानों को बचाने वाले नागराज हैं-धरणेन्द्र एवं मुचुलिन्द । वृष्टि दानों ही कथाओं में सात दिन तक लगातार चलती है । विवरण में थोड़ी सी असमानता भी है-बुद्ध के प्रकरण में वृष्टि प्रकृतिदत्त है तथा पार्श्व के विवरण में वृष्टि प्रकृतिदत्त न होकर मेघमाली देव (जो कमठ का जीव है) के द्वारा प्रेरित है। पाश्व' का शत्र कमठ जानबूझ कर पार्श्व को यातना पहुँचाने हेतु वृष्टि उत्पन्न करता है और बाद में क्षमा-याचना भी करता है। यहाँ धरणेन्द्र वही जीव है जिसे कुमारावस्था में श्रीपार्श्व ने उसकी मृत्यु के समय नमस्कार मंत्र सुनाया था। धरणेन्द्र ऋणी है और पाश्व की सेवा कर उऋण होता है। दूसरी ओर मुचुलिन्द किसी भी तरह बुद्ध से पूर्ण संबंधित नहीं है। वह बुद्ध भगवान की सेवा कर अपने लिए पुण्य संचित करता है तथा उनकी स्तु।त कर, उनके उपदेश से लाभान्वित होता है। पाश्वनाथ-एक ऐतिहासिक पुनरवलोकन : भूमिका : जैन धर्म अथवा जैन साहित्य में जैन संस्कृति के उन्नायक चौवीस तीर्थ कारों को माना गया है। श्रीपार्श्व तेईसवें तीर्थकर थे । श्रीपार्श्व का जन्म वाराणसी के इक्ष्वाकुवंश में विशाखा 1. (अ) Dictionary of Pali Proper Names, G.P. Malalasekera, Vol. ||, London, 1960. p. 638. (a) Vinaya Pitak. Translated by Rhys Davids and Oldenberg. (Sacred Books of the East, Vol. XIII), part 1. pub. Motilal Banarsidass, Delhi, 1965, p. 80. (स) महावग्गा मिक्खु जगदीसकस्सपो, पालि पब्लीकेशन बोर्ड, बिहार, १९५६, १.३, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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